मंज़िल ही सब कुछ नहीं है; सफ़र को भी गले लगाना सीखें

मैं बचपन से ही मसीही हूँ लेकिन मेरी बचपन की सबसे बड़ी चिंताओं में से एक चिंता यह थी, कि कहीं मैं अपने ज़िंदगी के लिए ख़ुदा की मर्ज़ी से चूक न जाऊँ। मैं यह सुनते हुए बढ़ी हुई हूँ, कि ख़ुदा के पास हर इंसान के लिए एक अनोखी योजना और बुलाहट है, लेकिन वही योजना की तलाश में और उसमे मुक़म्मल होने में मुझे काफ़ी दबाव महसूस होता था। कई बार मैंने निराश होकर यह दुआ की, "ख़ुदा की मर्ज़ी को जानना इतना मुश्किल क्यों हैं? ख़ुदा, क्यों इसे सीधा-सीधा बताता नहीं है, ताकि मैं कोई गलती न करूँ?"
समय और तजुर्ब्रे के साथ मैंने एक क़ीमती सच सीखा है: मंज़िल ही सब कुछ नहीं है - सफ़र के दौरान कई अहम सबक़ भी सीखना ज़रूरी होता हैं। तो इस सफ़र को गले लगाइए।अगर ख़ुदा आपकी ज़िंदगी के मकसद के लिए ख़ास निर्देश और मुकम्मल योजना देना चाहता है, तो वह इसे बेशक़ इज़हार करेगा।
ख़ुदा ने मूसा से जलती हुई झाड़ी के ज़रिए कहा कि वह इस्राएल को छुड़ाएगा। – निर्गमन ३
फरिश्तों ने मरियम को यीशु की माँ बनने की घोषणा की। – लूका १:२६-३८
योना को नीनवे जाने के लिए कहां गया था, और जब उसने इनकार किया, तो उसे मछली के ज़रिए नीनवे पहुँचाया गया।" – योना १😳
हालाँकि, ये मिसालें इस क़ानून के लिए अपवाद हैं, कि आम तौर पर ख़ुदा अपनी योजनाएँ कदम-कदम पर इज़हार करता हैं। वह हमें एक ख़ूबसूरत सफ़र पर ले चलता है, जहाँ हर मोड़ एक नई दास्ताँ है, जहाँ हर क़दम में सिखने की और बढ़ने की रोशनी और तैयारी की मिसालें हासिल होती हैं।"
"जब फ़िरौन ने आखिरकार लोगों को जाने दिया, तो परमेश्वर ने उन्हें पलिश्तियों के प्रदेश से होकर मुख्य मार्ग पर नहीं चलाया, हालाँकि वह वादा किए हुए देश का सबसे छोटा रास्ता था। परमेश्वर ने कहा, ‘अगर लोग युद्ध का सामना करेंगे, तो वे अपना मन बदल सकते हैं और मिस्र लौट सकते हैं।"जब फ़िरौन ने लोगों को जाने की आज्ञा दे दी, तब यद्यपि पलिश्तियों के देश में होकर जो मार्ग जाता है वह छोटा था; तौभी परमेश्वर यह सोच कर उनको उस मार्ग से नहीं ले गया कि कहीं ऐसा न हो कि जब ये लोग लड़ाई देखें तब पछताकर मिस्र को लौट आएँ। इसलिये परमेश्वर उनको चक्कर खिलाकर लाल समुद्र के जंगल के मार्ग से ले चला। और इस्राएली पाँति बाँधे हुए मिस्र से निकल गए। – निर्गमन १३:१७-१८
यूसुफ की कहानी एक लाजवाब मिसाल है जहाँ ख़ुदा ने उसे मुक़म्मल तौर पर तैयार करने के लिए, उसके ग़ुलाम से शासक बनने के सफ़र को इस्तेमाल किया:
"यूसुफ को तब तक बंदी बनाये रखा जब तक वे बातें जो उसने कहीं थी सचमुच घट न गयी। यहोवा ने सुसन्देश से प्रमाणित कर दिया कि यूसुफ उचित था।"– भजन १०५:१९
दोस्त , आइए, हम एक साथ दुआ करें: "ऐ आसमानी पिता, मैं हर चीज़ से बढ़कर तेरी मर्ज़ी को मानना चाहती हूँ। आज मैं तेरे साथ इस सफ़र पर चलने का न्योता अपनाती हूँ और यह यक़ीन करते हुए कि तू अपनी योजनाओं को हर क़दम पर इज़हार करेगा। यीशु मसीह के नाम में। आमीन।"

