हमारा गुज़रा हुआ कल हमारी आख़री मंज़िल नहीं है

आज हम ‘रूत की क़िताब से सबक़’ की सीरिज को आगे बढ़ा रहे हैं। क्या अब तक आपको यह पसंद आया है?
कहानी की शुरुआत में, रूत (रूत १:३-१९), एक मोआब की रहने वाली स्त्री, अपने परिवार और पति के साथ अपने देश में, एक सुखी ज़िंदगी जीती दिखाई देती है।
फिर, कुछ अफ़सोसनाक हादसों की वजह से, उसकी और उसके परिवार की ज़िंदगी बदल जाती है। वह एक विवाहित स्त्री से एक ग़रीब, नि:संतान विधवा बन जाती है, जिसे अजनबी ज़मीन पर अपना खाना बटोरना पड़ता है (रूत २:२-३) और तो और, एक मोआबी होने के कारण, उसे खुद के देश से बेदख़ल किया जाता है, क्योंकि इस्राएली लोग, मोआबियों को तुच्छ समझते थे।
सारे हालात उसके ख़िलाफ़ थे। रूत के ननंद जैसे, उसके पास हर एक वजह थी कि वह भी अपने ग़म में डूबकर, गुमनामी में अपने परिवार के संग कई खो जाए (रूत १:११,१४)। लेकिन रूत ने अपने गुज़रे हुए कल को अपनी पहचान या अपनी राह में रुकावट बनने नहीं दिया। उसने ख़ुदा की सेवा करने का फ़ैसला लिया और यक़ीन किया कि उसके ज़िंदगी में अब भी उम्मीद बाक़ी है।
इस से यह सबक़ मिलती है कि जब हम ख़ुदा पर ईमान रखतें हैं, तो हमारा गुज़रा हुआ कल, हमारी आख़री मंज़िल नहीं होती हैं, और अभी के हालात हमारे भविष्य का आख़री फ़ैसला नहीं करतें हैं।
रूत एक नि:संतान, विदेशी विधवा से लेकर एक अमीर इंसान की बीवी, एक माँ और यीशु मसीह की पूर्वज़ भी बन गई। उसी देश में, जहाँ उसे बेदख़ल किया गया था और तुच्छ समझा था, वहाँ प्रसिद्ध हो गई, एक ऐसी बहू के रूप में जिसे सात बेटों से भी बेहतर कहा गया (रूत ४:१५)।
दोस्त , क्या आपके ज़िंदगी में ऐसा कुछ है जो आपको लगता है कि जिससे आपकी पहचान तय की जाती है? क्या आप विधवा (विधुर), तलाकशुदा, नि:संतान, अपराधी, विदेशी, बीमार, ग़रीब या निरक्षर हैं? याद रखें, आपकी पहचान यह नहीं है कि आप कौन हैं, बल्कि यह है कि आप किसके हैं। आप सबसे महान ख़ुदा के बेटे और बेटी हैं!
*"प्यारे दोस्तों, अब हम उस आसमानी पिता के बच्चे हैं, और जो कुछ हम होंगे, वह अभी तक ज़ाहिर नहीं हुआ हैं। मगर हम इतना जानते हैं कि जब यीशु मसीह आएगा, तो हम उसके जैसे होंगे, क्योंकि हम उसे वैसा ही देखेंगे जैसा वह है - रूबरू।" – १ यूहन्ना ३:२
*(इस प्रोत्साहन के कुछ आयत मेरे अल्फ़ाज़ और अंदाज़ में लिखें हैं।)

