मुझे यक़ीन है, मेरा उद्धारकर्ता ज़िंदा है

इस हफ़्ते का पूरा ध्यान महिलाओं पर है, क्योंकि कल इंटरनॅशनल महिला दिन है💃🏻।
हम बाइबल से जिस ख़ास स्त्री पर ध्यान दें रहे हैं: वो है रूत।
लेकिन आज, हम उस पुरुष पर थोड़ा ग़ौर करेंगे, जिसने रूत की क़िताब में एक अहम भूमिका निभाई हैं: वो हैं बोअज़।
बोअज़ एक अमीर इंसान था, रूत की सास, नाओमी का रिश्तेदार था और अपनी रहमदिल के लिए मशहूर था (रूत २:१,२०)। वह परिवारिक उद्धारक भी था।
आप सोच रहे होंगे। "यह क्या है?" 🧐
आज के ज़माने में यह रिवाज़ अजीब लग सकता है, लेकिन उन दिनों में एक परिवारिक उद्धारक, अपने ज़रूरतमंद परिवार के सदस्यों की मदद के लिए ज़िम्मेदारी लेता था। जैसे किसी ग़रीब परिवार द्वारा बेची गई ज़मीन को फिर से खरीदना या किसी गुलामी में बेचे गए रिश्तेदार को छुड़ाना, या जैसा कि रूत और नाओमी के कहानी में, बोअज़ को मरे हुए रिश्तेदार के वंश को आगे बढ़ाने के लिए एक वारिस प्रदान करना था।
एक परिवारिक उद्धारक को अकसर बड़ी क़ुर्बानी देनी पड़ती है। बोअज़ जानता था कि अगर रूत उसके पुत्र को जन्म देती हैं, तो वह पुत्र उसका नहीं, बल्कि नाओमी का पुत्र माना जाएगा और उसका उत्तराधिकारी नाओमी का मरा हुआ पति और पुत्रों का होगा (रूत ४:१४-१७)।
क्या यह आपको किसी और की याद दिलाती है? ऐसा कोई जिसने दूसरों के उद्धार के लिए अपने इकलौते पुत्र को क़ुर्बान कर दिया।
*“क्योंकि ख़ुदा बाप ने सारे जहाँ से ऐसी मोहब्बत की, कि उसने अपना एकलौता बेटा, यीशु मसीह हमारे लिए क़ुर्बान किया, ताकि जो कोई उस पर ईमान रखें वह भस्म न हो, परन्तु अब्दी ज़िंदगी हासिल करें।" – यूहन्ना ३:१६
पुराने नियम की कई कहानियों की तरह, रूत की क़िताब भी यीशु मसीह की ज़िंदगी और क़ुर्बानी का पैग़ाम पहिले से ही ज़ाहिर करती है।
इस कहानी में बोअज़ ने रूत का उद्धार किया, लेकिन कई सालों बाद, यीशु मसीह ने सारे जहाँ का उद्धार किया। वो एक ऐसा उद्धारकर्ता है, जो बोअज़ से भी ज़्यादा जुर्रतमंदी है, जिसने हमारे गुनाहों के लिए अपनी जान क़ुर्बान कर दी और क्रूस पर हमारे सारे ज़रूरतों को पूरा किया।
*“यीशु मसीह के क़ीमती लहू के ज़रिए और ख़ुदा बाप के रेहमत के अज़ीम दौलत के मुताबिक़, हमे उद्धार (गुनाहों की माफ़ी) हासिल हुई है।” – इफिसियों १:७
दोस्त , आज हम ख़ुदा की मोहब्बत और उद्धार के लिए शुक्रिया करें और स्तुति का एक गीत गाएँ:
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*(इस प्रोत्साहन के कुछ आयत मेरे अल्फ़ाज़ और अंदाज़ में लिखें हैं।)

