जो कोई अपनी ज़िंदगी मेरे लिए क़ुर्बान करेगा, वही उसे बचाएगा

आज इस सीरीज के आख़री दिन में आपका स्वागत है।
रूत की कहानी न्यायियों के समय में स्थापित है, जो इस्राएल के इतिहास का ऐसा काल है जो नैतिक पतन, ज़ुल्म, मूर्तिपूजा, भ्रष्टाचार और बुराई के लिए जाना जाता था (न्यायियों २ पढ़ें,)। यह बिलकुल आज के ज़माने की तरह हैं, जहाँ धर्म के नाम पर ज़ुल्म बढ़ रहे है, अनैतिकता बढ़ रही है और सच्चा ईमान दुर्लभ होते जा रहा है।
रूत की कहानी उस अंधेरे हालातों में एक छोटी-सी चिंगारी जैसे है। बोअज़ ने रूत के, बे रोक वफ़ादारी, बेशर्त मोहब्बत, ईमानदारी और उच्च नैतिकता को देखकर कहा:
"हे बेटी, यहोवा की ओर से तुझ पर आशीष हो; क्योंकि तू ने अपनी पिछली प्रीति पहली से अधिक दिखाई, क्योंकि तू क्या धनी क्या कंगाल, किसी जवान के पीछे नहीं लगी।" – रूत ३:१०
रूत जवान थी और वह जवान मर्दो के पीछे भाग सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। उसने ख़ुदा और अपनी सास के प्रति बे रोक वफ़ादारी दिखाई और इसी वजह से ख़ुदा ने उसे इनाम के तौर पर एक अज़ीम विरासत बख़्शी।
अगर हम रूत के कहानी को आज के नज़रिए से देखेंगे तो जिन "जवान मर्दों" का ज़िक्र किया गया हैं वो शायद कुछ चमकदार, लुभावने चीज़ों का प्रतीक हो सकता है, जिनका हम कभी-कभी लालच करते हैं - जैसे शोहरत, पैसा या कोई रिश्ता। ये चीज़ें अपने आप में ग़लत नहीं हैं, लेकिन अगर हम इनकी तम्मन्ना ख़ुदा की आज्ञाकारिता से ज़्यादा करतें हैं, तो इससे हमारा नुक़सान हो सकता हैं।
"अक्सर, ईमानदारी से जीने और ख़ुदा की आज्ञाओं का पालन करने का मतलब होता है, अपनी चाहतों और ख्वाहिशों को त्यागकर ख़ुदा की मर्जी को अपनी ज़िंदगी का मुख्य उद्देश्य बनाना।"
"उसने सबसे कहा, “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आपे से इन्कार करे और प्रतिदिन अपना क्रूस उठाए हुए मेरे पीछे हो ले। क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहेगा वह उसे खोएगा, परन्तु जो कोई मेरे लिये अपना प्राण खोएगा वही उसे बचाएगा।" – लूका ९:२३-२४
दोस्त , क्या आपकी ज़िंदगी में ऐसी कोई ग़लत इच्छाएँ हैं, जिन्हें त्यागने के लिए ख़ुदा आपसे कह रहा हैं। उन्हें दुआ में उसके हवालें कर दें, कि वह बदले में आपको एक आज्ञाकारिता की ज़िंदगी जीने की ताक़त दें।

