जब सबकुछ बिख़र जाए, तब भी स्तंभ मज़बूती से खड़े रहतें हैं

क्या आपने कभी किसी पेड़ के नीचे झपकी ली है? ये झपकियाँ सबसे बेहतरीन होती हैं! जब मैं छोटा था, छुट्टियों में, मुंबई की भागदौड़ भरी ज़िंदगी से दूर अपनी माँ के गाँव जाता था। वहाँ ज़िंदगी की रफ़्तार क़म होती थी और मैं हर दिन किसी घने पेड़ के नीचे आराम करने चला जाता था। मुझे नहीं पता कि ये ताज़ा हवा का कमाल था या पेड़ों से मिलने वाली ऑक्सीजन का (मैं वैज्ञानिक नहीं हूँ), लेकिन नींद से उठने के बाद मैं घर के अंदर मिलनेवाली नींद से भी ज़्यादा तरोताज़ा महसूस करता था।
पेड़ों में कुछ ख़ास बात है - वे ताक़त, बढ़ोतरी और सुक़ून के प्रतीक हैं। बाइबल में हमारी तुलना पेड़ों से करते हुए भजन संहिता १:१-३ में एक सफ़ल इंसान का वर्णन किया गया है:
“वह उस वृक्ष के समान है, जो बहती नालियों के किनारे लगाया गया है, और अपनी ऋतु में फलता है, और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। इसलिये जो कुछ वह पुरुष करे वह सफल होता है।” – भजन संहिता १:३
पेड़ों को बड़े होने में अनेक साल लग जातें हैं; इस दौरान वे कई मौसम का सामना करतें हैं, गहरी जड़ें जमाते हैं और अपने फ़ल, छाया और सहारा दूसरों के लिए प्रदान करते हैं।
एक और शानदार विचार है जो पतरस, १ पतरस २:५ में लिखा है।:
“तुम भी स्वयं जीवित पत्थरों के समान आत्मिक घर बनते जाते हो कि याजकों का पवित्र समाज बनकर ऐसे आत्मिक बलिदानों को चढ़ाओ जो यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर को ग्रहणयोग्य हों।” – १ पतरस २:५
कल के चमत्कार में हमने मंच और स्तंभ की बात की थी। पेड़, चट्टान और स्तंभ, इन तीनों में एक समानता हैं: वे वक़्त में खरे उतरते हैं और दूसरों के लिए आधार बनते हैं।
अस्थायी मंच जल्दी तैयार होते हैं और उससे भी तेज़ तोड़े जाते हैं - लेकिन एक स्तंभ मज़बूत और क़ायम रहता हैं। कभी-कभी, वे उस इमारत के गिरने के बाद भी खड़े रहते हैं जिसके लिए वे आधार थे।
मंच वो जगह हैं जहाँ पर कुछ वक़्त के लिए कोई खड़ा हो सकता हैं, लेकिन स्तंभ दूसरों को सहारा देने के लिए मज़बूती से और क़ायम के लिए स्थापित किये जातें हैं।
दोस्त , आइए दुआ करें:
“ऐ आसमानी पिता, मुझे आपके राज्य में एक बुलंद स्तंभ बना। ज़िंदगी के हर मौसम में मुझे मज़बूत कर और मेरी जड़ों को गहराई से जमा ताक़ि मैं आपकी मोहब्बत और ताक़त का स्तंभ बनकर अपने आसपास के लोगों को सहारा दूँ। यीशु मसीह के नाम में। आमीन।”

