मंच के लिए स्तंभ बनों, न ही स्तंभ बिना मंच

पिछले कुछ दिनों से, हम आपसे मंच के पीछे भागने के बजाय एक मज़बूत स्तंभ बनने की अहमियत के बारे में बात कर रहे है। मैं पहले भी यह बात कह चुका हूँ और फिरसे कहूँगा: मंच बुरे नहीं होते - बल्कि, मैं तो मानता हूँ कि ये बेहतरीन होते हैं।
येशुआ मिनिस्ट्रीज़ के ज़रिए, हमने भारत में आराधना के मंचों में से एक सबसे बड़े मंच का निर्माण किया है जिससे लाखों लोगों को ख़ुदा के क़रीब आने में मदद हुई और बरक़त मिली हैं।
लेकिन मैंने यह भी देखा है कि एक मंच किस क़दर फायदेमंद हो सकता हैं और साथ ही नुक़सान भी ला सकता हैं। एक मज़बूत बुनियाद की गैरमौजूदगी की वजह से कई ज़िंदगियाँ बिख़र गई हैं।
तो हम मज़बूत और स्थिर मंच कैसे बनाएँ और सही तरीके से उनका इस्तेमाल कैसे करें? इसकी शुरुआत एक मज़बूत स्तंभ जैसी बुनियाद से होती है:“इसलिये जो कोई मेरी ये बातें सुनकर उन्हें मानता है, वह उस बुद्धिमान मनुष्य के समान ठहरेगा जिसने अपना घर चट्टान पर बनाया। और मेंह बरसा, और बाढ़ें आईं, और आन्धियाँ चलीं, और उस घर से टकराईं, फिर भी वह नहीं गिरा, क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर डाली गई थी। परन्तु जो कोई मेरी ये बातें सुनता है और उन पर नहीं चलता, वह उस निर्बुद्धि मनुष्य के समान ठहरेगा जिसने अपना घर बालू पर बनाया। और मेंह बरसा, और बाढ़ें आईं, और आन्धियाँ चलीं, और उस घर से टकराईं और वह गिरकर सत्यानाश हो गया।” – मत्ती ७:२४-२७ यीशु मसीह ही वह चट्टान हैं, जिस पर हमें अपनी ज़िंदगी की बुनियाद रखनी चाहिए। अगर हम उसे इजाज़त दें, तो वह हमें मज़बूत स्तंभ बनाएगा। – प्रकाशितवाक्य ३:१२
हमारा काम सिर्फ़ यह है की यीशु मसीह के साथ अपने रिश्ते (English https://www.bible.com/reading-plans/52228 / Hindi https://www.bible.com/reading-plans/52063) को गहरा करना, उसकी शिक्षाओं को सुनना और उन पर अमल करना हैं।
असफ़ल मंच, कमज़ोर बुनियाद का नतीजा हैं। मैं सच में यक़ीन करता हूँ कि जब हम स्तंभ बनने पर ज़ोर देंगे, तब मंच ज़रूर हासिल होगा।
“जो स्तंभ वक़्त के इम्तेहान से मज़बूत और बुलंद होते हैं, वे भरोसेमंद और अक़्लमंदी के मंच को निर्माण करते हैं।" – फ़िल डूली
"लेकिन मैं यह कैसे करूँ?" यही आपका सवाल है, हैं न?बाइबल बार-बार यही सिखाती है कि हम यीशु मसीह को और क़रीबी से जाने और उस ही पर अपनी नज़रें लगाए रखें - इब्रानियों १२:१-२, पहले उसके राज्य की ख़ोज करें - मत्ती ६:३३ और अपने मन को आसमानी बातों पर लगाए रखें - कुलुस्सियों ३:१-२।
दोस्त , आज इस बात पर ज़ोर दे कि आप कौन बन रहे हैं इसके बजाय कि आप क्या निर्माण कर रहे हैं।

