सलाम सलाम, मैं आपको करता हूँ!

आपने शायद देखा होगा कि हम रोज़ाना आपको ‘नमस्ते’ से नहीं बल्कि ‘सलाम’ के साथ अभिवादन करते हैं। यह थोड़ासा अजीब लग सकता है क्योंकि ‘सलाम’ अक्सर मिडल इस्टर्न के अभिवादन से जुड़ा है, जबकि ‘नमस्ते’ को भारतीय माना जाता है।
हमें अपने चुनाव को समझाने की इजाज़त दें।
‘नमस्ते’ एक संस्कृत शब्द है जिसका मतलब है ‘मैं आपके सामने झुकता हूँ’। कुछ ईसाई यह तर्क कर सकते हैं कि झुकना केवल खुदा की तरफ ही होना चाहिए (फिलिप्पियों २:१०-११ ), जबकि कुछ लोगों का कहना यह है की खुदा के अलावा, किसी इंसान को सम्मान देते हुए झुकना, जब सांस्कृतिक रूप से योग्य हैं, जैसे की बाइबल में अब्राहम, याकूब और यूसुफ ने भी किया था, तब वह गलत नहीं हैं।
मूलरूप से ‘सलाम’ यह शब्द हिब्रू भाषा का शब्द ‘शालोम’ से जुड़ा हैं, जिसे यीशु मसीह ने भी, लोगों का अभिवादन करने के लिए, इस्तेमाल किया था! यीशु मसीह ने कहा: “तुममें शांति बनी रहे।” – योहन २०:१९
अंग्रेजी में ‘शालोम’ शब्द का मतलब 'शांति' है, लेकिन यह एक साधारण अभिवादन से कहीं ज़्यादा गहरा है। यह पूर्णता, संपूर्णता, आनंद, सेहत, हिफाज़त और सफलता का प्रतिक है – यह सारी बरकते जो केवल खुदा में ही मिलती हैं (याकूब १:१७)।
“जो परमेश्वर पर भरोसा रखते हैं उनके मन को पूर्ण शांति मिलती है, और याहवेह उनकी रक्षा करते हैं।” – यशायाह २६:३
इस आयत में 'शालोम' शब्द का जिक्र 'पूर्ण' और 'शांति' दोनों के लिए हिब्रू भाषा में किया गया है 🤯 और अगर इसका शाब्दिक अनुवाद किया जाए तो यह शायद ऐसा पढ़ा जाएगा, “जो परमेश्वर पर भरोसा रखते हैं उनके मन को शांति-शांति (आर्थात शालोम-शालोम) मिलती है।”
तो हम 'नमस्ते’; जिसका अर्थ है ‘मैं आपके सामने झुकता हूँ’ के बजाय, क्यों न ‘सलाम’ कहकर खुदा की पूर्ण शांति और सारी बरकतों को आप पर बुलाये?
आज यीशु मसीह आपसे कहता हैं: दोस्त , शालोम, “मैं तुम्हारे लिए शांति छोड़े जाता हूँ, अपनी शांति तुम्हें देता हूँ; जैसी संसार देता है, वैसी मैं तुम्हें नहीं देता। तुम्हारा मन व्याकुल न हो और न डरे। मुझ पर भरोसा रखने से तुम्हे पूर्ण शांति मिलेगी और मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा ।” (योहन १४:२७ यशायाह २६:३)

