ख़ुदा की इबादत ख़ुशी से करों।
ज़रा सोचिए - अगर आप तक़रीबन ९ महीनों तक बेआवाज़ और ख़ामोश रहें, और फ़िर अचानक आपकी आवाज़ लौट आए, तो आपके होंठों से निकलने वाला पहला लफ़्ज़ क्या होगा?
अब इस समीकरण में एक और आयाम जोड़ें — बुढ़ापे में, कई सालों की दुआओं और इंतज़ार के बाद, उसी क्षण जब आपका पहला बच्चा जन्म लेता है, आपकी आवाज़ अचानक लौट आती है। सोचिए, उस पल आपका पहला लफ़्ज़ क्या होगा?
मैं हज़ारों चीज़ें सोच सकती हूँ जो उस पल मेरे होंठों से निकल सकती थीं: ख़ुशी, हैरानी, मेरे जीवनसाथी के लिए प्रोत्साहन के लफ्ज़ और ज़ाहिर है, जन्मे हुए बच्चे के लिए मोहब्बत की बारिश।
यह सब सुनने में शायद आपको अजीब लग रहा होगा लेकिन ज़खरिया के साथ सच में ऐसा ही हुआ था और यह बाइबल में लूका १ में लिखा है।
जब वह ९ महीने की ख़ामोशी के बाद बोलने लगा, तो उसका पहला लफ्ज़ यह था:
“इस्राएल का ख़ुदा, हमारा ख़ुदा, तारीफ़ के लायक है, क्योंकि वह अपने लोगों के पास आया हैं और उसने उनका उद्धार किया हैं। अपने सेवक दाऊद के घर में उसने हमारे लिए उद्धार का झंडा बुलंद किया है।” – लूक १:६८-६९
ज़खरिया द्वारा ख़ुदा की तारीफ़ का गीत गाया गया, जो ११ आयतों तक चलता है। (लूक १:६८-७९)। इससे यह साबित होता हैं कि उसने अपनी प्राथमिकताएँ सही रखी थीं; कुछ और कहने से पहले, उसके होंठों पर ख़ुदा की तारीफ़ थी!
यह हमें याद दिलाता है कि, हमारी पहली प्राथमिकता, ख़ुदा की तारीफ़ होनी चाहिए।
“ख़ुशी के साथ ख़ुदा की इबादत करें; ख़ुशहाल नगमों के साथ उसके सामने आएँ। जान लें कि वही ख़ुदा है। उसने हमें बनाया हैं, और हम उसके हैं; हम उसके लोग हैं, उसकी चरागाह की भेड़ें। शुक्रिया के साथ, उसके फ़ाटकों में प्रवेश करें, और तारीफ़ के साथ, उसके दरबार में; उसका शुक्र अदा करें और उसके नाम की महिमा करें। क्योंकि ख़ुदा भला है और उसकी मोहब्बत क़ायम है; पीढ़ी-दर-पीढ़ी तक, उसकी वफ़ादारी क़ायम है।” – भजन संहिता १००:२-५
आज कोई भी काम करने से पहले, कुछ पल निकालकर, ख़ुदा की तारीफ़ ज़रूर करें!