यीशु मसीह पूरी तरह इंसान भी था और ख़ुदा भी।
यक़ीन नहीं होता कि यह साल कितनी तेज़ी से गुज़र गया। बस चंद हफ़्तों में हम क्रिसमस की ख़ुशियाँ मनाने वाले हैं।
हर तरफ़ क्रिसमस के जश्न की तैयारियाँ ज़ोरों पर हैं! शायद आपने क्रिसमस की कहानी सुनी होगी जिसमे खुदा के बेटे, यीशु मसीह का इंसान बनकर इस ज़मीन पर जन्म हुआ ताक़ि उसकी क़ुर्बानी के ज़रिये हम उद्धार और अब्दी ज़िंदगी हासिल कर सके।
लेकिन कई बार, जानी-पहचानी कहानियों को एक नए नज़रिए से पढ़ना, और ख़ुद को किसी ख़ास किरदार की जगह रखकर देखना, बेहद फ़ायदेमंद साबित होता है—क्योंकि इससे नई उमंगें और ताज़ा एहसास जन्म लेते हैं। शाही ज़बान में इसे ‘किरदार-अध्ययन’ कहा जाता है, मगर मैं इसे यूँ कहना पसंद करूँगा: क्रिसमस, मरियम की नज़र से।
यीशु मसीह की माँ, मरियम का किरदार इस पूरी कहानी में ख़ास और अहम है। सबसे पहले तो, उसके पास एक फ़रिश्ता आया और उसने भविष्यवाणी का पैग़ाम लाया:
“तू गर्भवती होगी और एक बेटे को जन्म देंगी, और तुझे उसका नाम यीशु रखना हैं।” – लूका १:३१
फ़रिश्ते का ज़ाहिर होना अपने-आप में ही एक अद्भुत और हैरान कर देने वाली घटना थी। लेकिन मरियम की नज़र से देखा जाए तो उसका पैग़ाम और भी विस्मयकारी और अकल्पनीय था—क्योंकि वह कुँवारी थीं, और बिना शादी और यौन संबंध के किसी बच्चे का जन्म देना इंसानी हिसाब से नामुमक़िन था।
मरियम, एक कुँवारी होते हुए उसने ख़ुदा की रूह के ज़रिये, यीशु मसीह को गर्भ में धारण किया - ये हक़ीक़त हमारे मसीही ईमान की बुनियादों में से एक है। हर इसाई संप्रदाय के "आस्था पत्र" में (जो की "अँपोस्टोलिक क्रीड" कहलाता है) इसका ज़िक्र शामिल है।
यह क्यों इतना अहम है? क्योंकि यह साबित करता है कि यीशु मसीह पूरी तरह इंसान भी था, जो एक कुँवारी से जन्मा और पूरी तरह ख़ुदा भी था, जो ख़ुदा की रूह से गर्भ में धारण हुआ।
एक पल ठहरकर ज़रा सोचिए, हम उस ख़ुदा की इबादत करते हैं जिसने इंसान का रूप लिया। जब यीशु मसीह इस धरती पर ज़िंदा था - जब उसने सिखाया, शिफ़ा दी, मुर्दों को जिलाया, जब उसने हमारे गुनाहों के लिए क़ुर्बानी दी - वह पूरी तरह इंसान भी था और ख़ुदा भी। क्या ये अद्भुत नहीं है?