तूफ़ान के बीच भी शुक्रगुज़ार रहें।
क्या आपको २७ जुलाई २००५ की मुंबई की बाढ़ याद हैं?
मैं मुंबई में बड़ा हुआ हूँ और वह दिन मेरी यादों में हमेशा के लिए बस गया है। उस दिन, काम से घर लौटते हुए मैं उस भयंकर बाढ़ में पूरी तरह फँस गया था – घर से दूर, चारों तरफ़ उठते पानी से घिरा हुआ, और कोई मदद नज़र नहीं आ रही थी। डर था कि शायद मैं इस आपदा से बच न पाऊँ।
मेरी ज़िंदगी का वो सबसे डरावना मंज़र था।
उस बेरहम बाढ़ से रूबरू होने के बाद, मैंने पौलुस और २७५ नाविकों की हालात समझी जो एक तेज़ तूफ़ान में फँस गए थे। जहाँ मेरी मुस़ीबत महज़ कुछ ही घंटों तक थी, वे लोग दो हफ़्तों से भी ज़्यादा देर तक एक डूबते हुए जहाज़ में, समुंदर के भयंकर तूफ़ान में उलझे रहे 😱 (प्रेरितों के काम २७)।
पौलुस उस अनुभव को इस तरह ज़ाहिर करता है:
*“जब कई दिनों तक न सूरज न तारे नज़र आये और तूफ़ान लगातार बढ़ता रहा, तो हमने आख़िरकार बचने की सारी उम्मीदें खो दी।” – प्रेरितों के काम २७:२०
जहाज़ को हल्क़ा करने के लिए कई चीज़ों को समुंदर में फ़ेंकना पड़ा। अनाज फ़ेंकने से पहले, पौलुस ने नाविकों को भोजन खाने के लिए कहा, जो शायद उनका आख़री हो सकता था।
*“उसने रोटी ली और सबके सामने ख़ुदा का शुक्र अदा किया। फ़िर उसने उसे तोड़ा और खाने लगा। सभी को हौसला मिला और वे भी खाने लगे।” – प्रेरितों के काम २७:३५-३६
पौलुस ने तूफ़ान के बीच में ख़ुदा का शुक्र अदा करना चुना। उसने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि उन्हें ख़ुदा की मदद और हिफ़ाज़त की ज़रूरत थी, बल्कि उस पर नज़र डाली जो ख़ुदा पहले ही अता कर चुका था: वही खाना जो उनके सामने मौजुद था।
अगले दिन, सभी २७६ लोग महफूज़ किनारें पर पहुंचे, जैसा कि ख़ुदा ने पौलुस से वादा किया था。
अगर पौलुस ने तूफ़ान के बीच में शुक्र अदा किया, तो हम भी अपने ज़िंदगी के तूफ़ानों में शुक्र अदा कर सकते हैं।
आपके ज़िंदगी के तूफ़ान में आपके सामने ऐसी कौन-कौन सी चीज़ें मौजूद हैं? उनकी सूची बनाए और ख़ुदा का शुक्र अदा करें।