ख़तरे के बीच भी शुक्रगुज़ार रहें।
मैं बेमतलब के ख़तरे से दूर रहता हूँ। आप मुझे बंजी जंपिंग करते, स्काइडाइविंग करते, या यहाँ तक कि रोलर कोस्टर पर चढ़ते नहीं पाएंगे। ये सब मुझे बिल्कुल भी रोमांचक नहीं लगता हैं।
मैं सिर्फ़ ख़ुदा के सुसमाचार के लिए अपनी जान को जोख़िम में डालूंगा। मैंने अपने पिता को ऐसी समर्पित ज़िंदगी जीतें हुए देखा है। कई बार अपनी जान को ख़तरे में डालकर, गाँव-गाँव, दूरदराज़ और संवेदनशील इलाक़ों में जाकर उन्होंने यीशु मसीह की मोहब्बत का पैग़ाम फैलाया हैं।
उनकी दलेरी मुझे दानियल की याद दिलाती है, जिसने अपनी जान जोख़िम में डालकर, ख़ुदा की इबादत, ख़ुलकर करने का फ़ैसला किया।
दानियल ६ में, राजा दारियस ने एक अजीब कानून लागू किया: उसके राज्य के हर शख़्स को सिर्फ़ राजा दारियस की ही पूजा करनी थी। जो कोई भी किसी और देवता या इंसान की पूजा करता, उसे शेरों की गुफ़ा में फेंक दिया जाता।
इन हालातों में दानियल अपने ईमान को छिपाकर, गुप्त में इबादत कर सकता था। लेकिन दानियल ६:१० में लिखा है:
“जब दानियल को पता चला कि ऐसा फ़रमान जारी कीया गया है, तो वह अपने घर उस ऊपर के कमरे में गया, जहाँ खिड़कियाँ येरूशलेम की तरफ़ खुलती थीं। वहां उसने दिन में तीन बार घुटने टेककर अपने ख़ुदा के सामने दुआ की और शुक्र अदा किया, जैसे कि वह पहले से करता आ रहा था।”
चौंकाने वाली बात यह हैं कि उसने सिर्फ़ राजा के मन और उसके फ़रमान को बदलने के लिए दुआ नहीं की—बल्कि इस बे-इंसाफ़ क़ानून के बावजूद, उसने ख़ुलकर ख़ुदा का शुक्र अदा किया।
काश मैं उस वक़्त दानियल के कमरे में होता और उसकी दुआ सुन पाता। ख़ुदा का शुक्र अदा करने के लिए उसने किन अल्फ़ाज़ों का इस्तेमाल किया होगा? क्या उसने हिफ़ाज़त और बचाव के लिए दुआ की?
क्या आप खूंखार शेरों के सामने ख़ुदा का शुक्रिया अदा कर पाते?
मैंने अपने आप से भी यही सवाल किया। ऐसे हालातों में मैं शायद ख़ुदा से रहम की भीक मांगता या अपनी जान बचाने की दुआ करता या हिफ़ाज़त के वादों को याद करता - लेकिन ईमानदारी से कहूँ तो, उस वक़्त ख़ुदा का शुक्रिया करना काफ़ी मुश्किल होता।
दानियल की कहानी हमें एक बार फ़िर याद दिलाती है कि हर हालातों में शुक्रगुज़ार होना कितना अहम है (१ थिस्सलुनीकियों ५:१६-१८) दानियल की तरह, क्या आज आप भी ख़ुदा का शुक्र अदा करने का फ़ैसला करेंगे?