लगातार दुआ करे।
कॅमरॉन और मेरे भारत में दो भतीजे हैं और कुछ पाने के लिए दोनों के अपने-अपने अंदाज़ हैं। बड़ा वाला जब “ना” सुनता है तो मुँह फुलाता है, हाथ पर हाथ रखकर गुस्से में चिल्लाता है “पर मुझे चाहिए!” 😤
वहीं छोटा वाला ज़रा मासूमियत से जज़्बाती तरीका अपनाता है। जब उसे “ना” कहा जाए, तो वो अपनी आँखे छोटी बना कर, सिर को तिरछा कर के, सबसे प्यारे अंदाज़ में कहता है “प्लीईईईईईईजज़ज़जज़ज़???” 🥺
इन दोनों की नौटंकी देख कर मुझे हमेशा हँसी आती है, लेकिन इनके अलग़-अलग़ अंदाज़ के बावजूद एक चीज़ उनमें समान है - वे लगातार क़ोशिश करतें रहते हैं।
जब बात हमारी ख़ुदा से दुआ करने की आती है, तो कभी-कभी हमें भी बच्चों जैसी यही लगातार कोशिश की ज़रूरत होती है।
मुझे बाइबल की अंधे बरतिमाई की वो कहानी याद आती है (मरकुस १०:४६-५२)।
वो एक अंधा इंसान था जिसने जब सुना कि यीशु मसीह वहाँ से गुज़र रहा है, तो उसने बार-बार बच्चों की तरह ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाना शुरू किया, *“यीशु, दाऊद की संतान, मुझ पर रहम कर!”
लोग उसे चुप कराने लगे, डाँटने लगे, मगर उसने और भी ऊँची आवाज़ में चिल्लाया। उसकी लगातार फ़रियाद सुनकर यीशु मसीह, जैसे किसी जिद्दी बच्चे की बात सुनने वाले माता–पिता की तरह, ठहर गया और उसके ज़रूरत को पूरा किया। यीशु मसीह ने कहा, *“जा, तेरे ईमान से तुझे शिफ़ा हासिल हुई है।” (मरकुस १०:५२)
यीशु मसीह ने अपने चेलों को भी यही लगातार दुआ करने के बारे में सिखाया (लूका १८:१-८)
आख़िर में यीशु मसीह ने कहा:
*“क्या ख़ुदा अपने चुने हुए लोगों को इंसाफ न देगा, जो दिन–रात उसकी तरफ़ फ़रियाद करते हैं? क्या वो उन्हें यूँ ही टालता रहेगा?”
आज आपको ख़ुदा से क्या चाहिए? उसका ज़िक्र दुआ में ज़रूर कीजिए। सिर्फ़ आज ही नहीं, बल्कि बार-बार, बच्चों जैसी लगातार लगन के साथ。