माफ़ करने में देरी न करें।
जिन माता-पिता के एक से ज़्यादा बच्चे हैं, वे इस बात को इंकार नहीं करेंगे की बच्चे कभी एक-दूसरे को काँटते, लात मारते या बाल खींचते हैं और अगले ही पल फ़रिश्तों की तरह साथ खेलते नज़र आते हैं।
वे पलक झपकते ही दुश्मन से जिगरी यार बन जाते हैं।
हक़ीक़त यह है कि बच्चे माफ़ करने में देरी नहीं करतें हैं। वे नाराज़गी नहीं पालते और आसानी से गीले-शिक़वे भूल जाते हैं। और इस दुनिया को इसी ख़ूबि की बेहद ज़्यादा ज़रूरत है।
बाइबल कहती है:
*“एक-दूसरे पर मेहरबान और रहमदिल बने और एक-दूसरे को माफ़ करे, जैसे मसीह में ख़ुदा ने तुमको माफ़ किया हैं ” – इफ़िसियों ४:३२
और:
*"एक-दूसरे के साथ सह लो और अग़र किसी को किसी के ख़िलाफ़ शिक़ायत हो, तो एक-दूसरे को माफ़ करो, जैसे ख़ुदावंद ने तुम्हें माफ़ किया, वैसे ही तुम भी माफ़ करो।" – कुलुस्सियों १:२
माफ़ करना एक चुनाव है। हमें बुलाया गया है कि हम बच्चों की तरह जल्दी माफ़ करें और ग़ुस्से या नाराज़गी को अपने दिल में जगह न दें।
इसका मतलब यह नहीं कि बुरे बर्ताव को सही ठहराना है या यह दिखाना है कि सब कुछ सही हैं। बल्कि इसका मतलब है उस चोट और दर्द की गिरफ़्त से अपने आप को रिहा करना।
ज़रा सोचिए—पुराने ज़ख़्मों को बार-बार अपने दिल-ओ-दिमाग़ में दोहरा कर, हम कितना वक़्त और कितनी ताक़त इस में बरबाद कर देते हैं।
यह हमारे मन को बोझिल और हमारी समझ को धुँधली कर देती है — यहाँ तक कि हमारी सेहत पर भी इसका गहरा असर पड़ता है। लेकिन जब हम माफ़ करने का चुनाव करते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे हम अपने कंधों से कोई भारी बोझ उतार रहे हों।
जैसा कि पौलुस ने कुलुस्सियों को याद दिलाया, यीशु मसीह ने क्रूस पर इसी तरह की माफ़ी का नमूना पेश किया। उसने उन सबको माफ़ किया जिन्होंने उसका मज़ाक़ उड़ाया, गालियाँ दीं, सताया और यहाँ तक कि उसे क्रूस पर चढ़ाया।
अगर यीशु मसीह ने अपने सताने वालों और क़ातिलों को माफ़ किया, तो आप भी कर सकते है!
आओ मिलकर दुआ करें:
“ऐ आसमानी पिता, आज मैं उस इंसान को माफ़ करने का चुनाव करती हूँ जिसने मुझे चोट पहुंचाई हैं। मैं उस दर्द और नाराज़गी को पीछे छोड़ने का फ़ैसला लेती हूँ और साथ में, मैं आपकी वो माफ़ी क़ुबूल करती हूँ, जो यीशु मसीह ने क्रूस पर मुक़म्मल की। यीशु मसीह के नाम में, आमीन।”