नम्रता, मासूम बच्चे की तरह है।
एक दफ़ा, कलीसिया में एक छोटा लड़का मुझे साउंड सिस्टम को उठाने में मदद करने के लिए ज़ोर देने लगा। पहले पहल, मैंने हल्के सामान देकर उसे टालने की कोशिश की। लेकिन वह कुछ बड़ा और भारी सामान उठाने की ज़िद्द करने लगा।
उसके माता-पिता की रज़ामंदी के साथ, मैंने आख़िर में उसे पय्यों पर लगा, एक छोटा लेकिन थोड़ा भारी स्पीकर थमा दिया, जिसे वो अपनी पूरी ताक़त से खींचने लगा।
बहुत जल्दी ही उसकी कमज़ोरी ज़ाहिर हुई। उसका इरादा अटल था, लेकिन आख़िर नम आँखों से उसने मदद मांगी।
उस पल को मैं कभी नहीं भूल सकता।
वह छोटा लड़का जिद्दी ज़रूर था, लेकिन उसने कुछ ऐसा जान लिया जो हममें से ज़्यादातर बड़े लोग नज़रअंदाज़ कर देते हैं —हम सब कुछ अकेले नहीं कर सकते और मदद माँगना लाज़मी और जायज़ है।
विनम्रता, बड़े लोगों से ज़्यादा, बच्चों में स्वाभाविक रूप से होती है। शायद इसी वजह से मरकुस १०:१५ में यीशु मसीह कहता है:
*“मैं तुम से सच कहता हूँ कि जो कोई, एक छोटे बच्चे के समान, ख़ुदा के राज्य को स्वीकार नहीं करेगा, वह उसमें कभी दाख़िल नहीं होगा।”
ख़ुदा के राज्य को क़ुबूल करना, कई मायनों में, बच्चे के समान होना है—यह मान लेना कि आपको मदद की ज़रूरत है।
इसका मतलब है अपने आप को नम्र करना और यह समझना कि आप ज़िंदगी के भारी बोझ को अकेले नहीं उठा सकते और यह मान लेना कि आपको एक उद्धारकर्ता की ज़रूरत है।
आपकी जगह, यीशु मसीह आपके बोझ को उठाने का न्योता दे रहा है।
*“हे सब थके-हारे और बोझ से दबे हुए लोग, मेरे क़रीब आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूँगा। मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो, और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूँ : और तुम अपने प्राण में विश्राम पाओगे।” – मत्ती ११:२८-३०
क्या आप उस छोटे लड़के की तरह, जो स्पीकर उठाने की कोशिश कर रहा था, यह मानने के लिए राज़ी हैं कि आपको मदद की ज़रूरत है?
अब आपको अकेले संघर्ष करने की ज़रूरत नहीं है। हमारे पास एक शानदार टीम है, प्रशिक्षित ई-कोच की, जो आपसे सुनने के लिए इंतजार कर रहे है। अगर आपको प्रोस्ताहन की ज़रूरत है, तो इस ई-मेल का जवाब देकर उनसे आज ही संपर्क करें।