नम्रता, आज़ादी है।
बाइबल में नम्रता की सबसे हैरान कर देनेवाली तस्वीर वो है जब पासओवर (फ़सह) के भोजन के दौरान, यीशु मसीह अपने चेलों के पाँव धोता हैं। (यूहन्ना १३:३-७)।
इस क़दर की नम्रता से चेले परेशान हो जाते हैं। शिमोन पतरस कहता है – “नहीं, आप कभी मेरे पाँव नहीं धोएँगे” (यूहन्ना १३:८)। वो कितना अजीब, पर ग़ज़ब का लम्हा रहा होगा!
सच्ची नम्रता अक़्सर हमें बेचैन और असहज कर देती है, क्योंकि वो हमारे दिल के उस अंधेरे कोने को उजागर करती है जहाँ अब भी घमंड और अहंकार बाक़ी है। पतरस की तरह, जब हमें असल नम्रता से बेहिसाब रहम, समझदारी और निःस्वार्थता मिलती है, तब उसे स्वीकारना अजीब लगता है।
मगर इसमें एक ख़ास बात है: नम्रता हमे जितनी ज़्यादा असहज करती है, उससे कई ज़्यादा दिलकश भी करती है। नम्र लोग के साथ मशगूल होना आसान होता हैं। वे जल्दी नाराज़ नहीं होते, अपने अहंकार में ज़्यादा डूबे नहीं रहते और दूसरों में असल दिलचस्पी रखते हैं।
नम्र लोगों की सबसे ख़ूबसूरत बात ये है कि वे दिल से आज़ाद होते हैं। क़शमक़श से आज़ाद। घमंड से आज़ाद। ख़ुदग़रज़ी से आज़ाद।
और ये आज़ादी, बड़ी क़ीमत अदा करके यीशु मसीह ने हमें दी है:
“आज़ादी में जीने के लिए, यीशु मसीह ने हमे रिहा किया है; स्थिर रहे, और ग़ुलामी के बोझ से न झुकें।” – गलातियों ५:१
घमंड, अहंकार और ग़ुस्सा, नम्रता के विपरीत है और इनके ज़ंजीरों से हम उनके क़ैदी हो जाते हैं।
क्या कभी ग़ुस्से ने आप पर क़ाबू पा लिया है? या घमंड आपकी ज़िंदगी में दाख़िल हुआ हैं? अगर हम इन्हें इजाज़त दें तो यह ज़हरीले और नुक़सान पहुँचाने वाले गुण हैं जो हमें जकड़ लेते हैं।
मगर नम्रता एक चुनाव हैं — जो फ़लदायक है।
“इसलिये ख़ुदा के चुने हुओं के समान, जिन्हे पाक किया है और जिनसे बेहद मोहब्बत की हैं, वे अपने आपको रहमत, एहसान, नम्रता, नरमी और सब्र के लिबाज़ में ओढ़े।” – कुलुस्सियों ३:१२
“लिबाज़ ओढ़ना” अपने आप नहीं होता हैं; लेकिन उसके लिये मेहनत करनी पड़ती है, जैसे की कपड़े चुनना और पहनना। बिल्कुल यही सच नम्रता दिखाने में भी है; यह आपको सक्रीय होकर चुनना है।
क्या आप नम्रता की आज़ादी का चुनाव करेंगे या घमंड और ग़ुस्से के ज़ंजीरों में क़ैद रहना चाहेंगे? फ़ैसला आपका है!