नम्रता का मतलब हैं, अनुसरण करना।
मुझे यह देखकर हमेशा हैरानी होती है कि मसीही किताबों की दुकानों में, अगुवाई पर तो अनगिनत किताबें मिलती हैं, मगर अनुसरण पर शायद ही कोई।
क्या यह अजीब नहीं है?
बाइबल में अगुवाई से जुड़ी आयतें बहुत ही कम हैं। मानो ख़ुदा को महान अगुओं को तैयार करने में ज़्यादा दिलचस्पी ही न हो - जिस तरह यह दुनिया उसे पेश करती हैं। 🤔
यीशु मसीह ने भी अनुसरण करने पर ज़ोर दिया:
- *“यीशु ने उन से कहा, “मेरे पीछे चले आओ, तो मैं तुम को इंसानों के जालबाज़ बनाऊँगा।” – मत्ती ४:१९
- “फिर उसने उन सब से कहा, “यदि कोई मेरे पीछे चलना चाहता है तो उसे अपने आप को नकारना होगा और उसे हर दिन अपना क्रूस उठाना होगा। तब वह मेरे पीछे चले।” – लूका ९:२३
- *“मेरी भेड़ें मेरी आवाज़ सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरा अनुसरण करतें हैं।” – यूहन्ना १०:२७
बाइबल के अनेक कहानियों में ख़ुदा, क़ामयाब, ताक़तवर और योजनाबाज़ लोगों के बजाय, कमज़ोर, तिरस्कृत और टूटे-फूटे लोगों को चुनकर, उनका इस्तेमाल करता है। उन सबमें एक बात समान है: वे काफ़ी नम्र और सच्चे अनुसरण करनेवालें हैं।
नम्रता का मतलब हैं, अगुवाई के बजाय अनुसरण का चुनाव करना। और जब ख़ुदा आपको अगुआई के स्थान पर बिठाता है, तब भी और ज़्यादा अनुसरण करना, क्योंकि असली रहनुमा ख़ुदा ही है।
कॉरी टेन बूम, जिसकी दुनिया भर में सेवक़ई रही हैं, उसने सच्ची अगुवाई और नम्रता की बेहतरीन तस्वीर पेश की है:
“जब यीशु मसीह गधे की पीठ पर यरूशलेम में दाख़िल हुआ और लोग ख़जूर की डालियाँ लहरा रहे थे, अपने कपड़े रास्ते पर बिछा रहे थे—क्या आपको लगता है कि उस गधे के दिमाग़ में कभी यह ख़्याल आया होगा कि यह सब कुछ उसके लिए ही हो रहा है?” फिर उसने आगे कुछ ऐसा कहा: “अगर मैं वही गधा बन जाऊँ जिस पर यीशु मसीह अपनी जलाल के साथ सवार हों, तो मैं सारी इज़्ज़त और महिमा उसे ही दूँगी।”
हमारा काम है बस वही गधा बनना। जहाँ यीशु मसीह ले चलता है, हमें उसके नाम को ले जाना है, उसका पैग़ाम लोगों तक पहुँचाना है और सारी महिमा उसे ही देनी है।