नम्रता का मतलब हैं, बे-ख़फ़ा रहना।
ज़िंदगी में मैंने एक बात ग़ौर की है कि सच्चे और नम्र लोगों को, नाराज़ या बेइज़्ज़त करना लगभग नामुमक़िन है।
कई लोग, छोटी-छोटी बातों पर नाराज़ हो जाते हैं और अपमानित महसूस करते हैं। लेकिन एक नम्र इंसान पर उन बातों का कोई असर नहीं होता हैं।
अब मैं एक ऐसी बात कहने वाला हूँ जो शायद आपको चौंका दे: नम्रता से विपरीत, अहंकार हैं। 🤯
हम भारतियों में, ख़ासकर हम भारतीय मर्दों में, अहंकार की भरपूरी है।
लो मैंने कह दिया।
और हाँ… मैं भी अपने आप को इसमें गिनता हूँ।
एक और सच्चाई जो शायद आप सुनना न चाहें: अगर आपको अक़्सर चोट पहुँचती है, दिल दुखता है या ग़ुस्सा आ जाता है, तो वक़्त आ गया है अपने अहंकार का जायज़ा लेने का। 🧐
ज़रा अपने घुटनो के बारे में सोचे। शायद अभी तक आपका ध्यान उस पर नहीं था, है न?
मेरे पैरों की हड्डियों में काफ़ी दर्द रहता है। दौड़ने या किसी खेल, ख़ासकर बैडमिंटन खेलने के बाद, मेरी पिंडलियाँ दर्द से जल उठती हैं। उस समय, हल्की टक्कर या सिर्फ़ स्पर्श भी तकलीफ़देह लगता है।
हमारे अहंकार का हाल भी ऐसा ही है। हर किसी के भीतर अहंकार होता है, लेकिन जब यह हद से आगे बढ़ जाता है, तो चोट लगना तय है। जितना बड़ा अहंकार, उतनी आसानी से वह खफ़ा और चोटिल होता है।
बाइबल हमें इस उसूल के बारे में चेतावनी देती है:
*“जब घमंड और अहंकार आते हैं तब शर्मिंदगी साथ लातें हैं; पर नम्र इंसान के पास समझदारी होती है।” – नीतिवचन ११:२
*“सब कुछ खोने से पहले, इंसान का दिल अहंकार से भर जाता है, लेकिन इज़्ज़त और आदर मिलने से पहले, नम्रता आती है।” – नीतिवचन १८:१२
दिलों में नम्रता तब जन्म लेती है जब हम जज़्बाती तौर पर स्वस्थ होते है। नम्रता का मतलब है यह याद रखना कि ख़ुदा ही मेरी हिफ़ाज़त है और जो कुछ लोग मेरे ख़िलाफ़ करते हैं, मैंने भी किसी न किसी के साथ वैसा ही सलूक़ किया है जिसके लिए ख़ुदा की माफ़ी हासिल हुई है।
हाँ, यहाँ तक कि सबसे नम्र लोग भी ग़ुस्सा करते हैं, लेकिन उनके लिए नाराज़ या बेइज़्ज़त होना लगभग नामुमक़िन है, क्योंकि उनके पास बुरा मानने की वजहें कम है।
अपने आपसे और ख़ुदा से ईमानदार होकर इस सवाल का जवाब देना: आपके अहंकार का क्या हाल हैं?