नम्रता, फ़लदायक है।
अक़्सर यह बहुत अच्छा लगता है जब कोई हमें बिल्कुल साफ़ और संक्षेप में यह बताता है कि उन्हें हमसे क्या उमीदें है। बाइबल कई प्रोत्साहन से भरपूर है और एक बेहतर, पाक़, ख़ुदा के क़रीब ज़िंदगी जीने के अनगिनत तरीक़े बताती है, पर कई बार यह सब कुछ भारी-भरकम भी महसूस हो सकता है।
मुझे नबी मीका की वह सरल तीन-गुना योजना बेहद पसंद है:
*“ख़ुदा आपसे क्या चाहता है? इंसाफ़ को अमल करना, रहम से मोहब्बत करना और अपने ख़ुदा के साथ नम्रता से चलना।” – मीका ६:८
इस हफ़्ते हम ख़ास तौर से आख़री हिस्से पर ग़ौर करेंगे: नम्रता से चलने का मतलब क्या है।
अब, मुझे मालूम है कि ‘नम्रता’ कोई बहुत दिलचस्प बात नहीं है। आज़ादी, छुटकारा या शिफ़ा के बारे में पढ़ना कहीं ज़्यादा रोमांचक लगता है। मैं आपके जज़्बात समझता हूँ। लेकिन नम्रता उन विषयों में से एक है जिन्हें हम टालते हैं क्योंकि हमारी अपनी कमी हमें आईने की तरह सामने खड़ी दिखाई देती है।
हम सब नम्र होने से ज़्यादा, ताक़तवर होने की ख़्वाहिश रखते हैं।
लेकिन इस विषय को शुरू करने से पहले मैं आपको थोड़ा प्रोत्साहन देना चाहता हूँ। बाइबल न सिर्फ़ हमें नम्र होना सिखाती है, लेकिन साथ ही विनम्र होने के लिए ठोस वजह भी देती है। नम्रता की राहों पर बरक़त और कमाल के इनाम मिलते है:
- *“ख़ुदा का आदरयुक्त ख़ौफ़ ही नम्रता है; उसका प्रतिफल दौलत, इज़्ज़त और ज़िंदगी हैं” – नीतिवचन २२:४
- *“ख़ुदा के आगे अपने आप को नम्र करे, और वह तुम्हें ऊँचा उठाएगा।” – याकूब ४:१०
- *“समझदारी हमे, ख़ुदा का आदरयुक्त ख़ौफ़ सिखाती हैं, और इज़्ज़त मिलने से पहले, नम्रता आती है।” – नीतिवचन १५:३३
- *“क्योंकि ख़ुदा अपने लोगों से ख़ुश होता है; वह नम्र इंसान को जीत का ताज पहनाता है।” – भजन सहिंता १४९:४
इस हफ़्ते, हम नम्र होने की गहराई को समझने की क़ोशिश करेंगे!
अगर आप यह सोच रहे हैं कि, “नम्र होना”, आपके लिए नहीं है - तो शायद आपको इसकी बेहद ज़रूरत है 😉 और मैं आपको चुनौती देता हूँ कि हमारे चमत्कार के प्रोत्साहन से आप इसके बारे में और जानकारी हासिल करे।
आपके पास सबसे बेहतरीन शिक्षक, यीशु मसीह हैं जो आपको न्योता दे रहा है:
“मुझसे सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूँ, और तुम्हारे प्राण सुक़ून और चैन पाएँगे।” – मत्ती ११:२९
तो क्या आप तैयार हैं? कल यहाँ फ़िर मिलेंगे एक छोटे से ब्रेक के बाद!