पिता की मोहब्बत हर बुराई को माफ़ कर सकती हैं – टिम केलर
मैंने ये कहानी पहले भी साझा की है और आज भी याद कर के मुझे शर्म महसूस होती है:
एक बार मैंने अपनी ही गाड़ी को अपनी दूसरी गाड़ी से टक्कर मार दी। 🫣
ये मेरी ज़िंदगी के सबसे शर्मनाक़ पलों में से एक पल था। मेरे पिता का शुक्रिया, जिन्होंने उस वक़्त मुझ पर गुस्सा नहीं पर बहुत ही रहमदिल से माफ़ कर दिया।
लेकिन सच कहूँ तो इससे भी बुरा यह होता अगर मैं अपने पिता से एक-तिहाई हिस्सा लेकर अपनी सरज़मीन छोड़कर किसी दूर देश चली जाती और सब कुछ पार्टियों, फ़रेबी दोस्तों और फ़िज़ूल चीज़ों पर लुटा देती — ठीक वैसे ही जैसे इस कहानी में, छोटे बेटे ने किया था। (लूका १५:११-३२)
इस ग़लती को माफ़ करना, शायद मेरे पिता के लिए और भी मुश्किल हो जाता, है ना?
फ़िर भी इस कहानी में, पिता ने वही किया – उसने अपने बेटे को महज़ माफ़ नहीं किया बल्क़ि उसे गले लगाकर दोबारा अपनाया।
उस पिता के हर इशारे में यही ज़ाहिर होता है कि चाहे हमारी ज़िंदगी में कितनी भी ग़लतियाँ और गुनाह क्यों न हों, हमारा आसमानी पिता हमें आज भी वैसे ही अपने मोहब्बत भरी बाहों में समेट लेता है:
१. वह पिता उसकी तरफ़ दौड़ता हैं। छोटा बेटा शर्म और इनकार की उम्मीद के साथ, झुकी नज़रों और भारी क़दमों से लौट रहा था। लेकिन पिता ने समाज के हर रिवाज़ को तोड़ते हुए, उसकी ओर दौड़ लगाई — उस दौर में इज़्ज़तदार मर्द कभी यूँ दौड़ा नहीं करते थे। मगर अपने बेटे को वापस अपनाने की तड़प में, उसने लोगों की सोच, मर्यादा और अपनी इज़्ज़त की परवाह किए बिना, अपनी बेइज़्ज़ती तक क़बूल कर ली। (रोमियों १०:९-११ )
२. पिता ने उसे नयें लिबाज़ से सजाया। उसने एक नया लिबाज़ पहनाकर उसके गुनाह, गंदगी और शर्म को ढक दिया — और उसके साथ उसकी खोई हुई इज़्ज़त भी उसे लौटा दी। (यशायाह ६१:१०)
३. उसने उसे अंगूठी पहनाई। सब कुछ गंवाने के बाद ये शायद उसकी पहली दौलती चीज़ रही होगी। पिता ने उसे ग़रीबी से निकाल कर फ़िर से अपने अज़ीम दौलत में शामिल कर दिया। (भजन संहिता ३४:१०)
४. उसने मोटा बछड़ा तैयार किया। पिता ने अपने भूखे और थके बेटे को खाना खिलाया। (भजन संहिता १४६:७)
५. उसने जश्न मनाया। उसकी तमाम ग़लतियों के बावजूद, पिता ने उसे बाँहों में भर लिया और उसकी वापसी को शर्म का नहीं, बल्कि इज़्ज़त और ख़ुशी का जश्न बना दिया। (सफ़न्याह ३:१७)
६. उसने उसे चूमा और पैरो में जूते पहनाए। आप किसी ग़ुलाम या अजनबी को नहीं, बल्कि अपने बेहद क़रीबी को चूमते हैं - और जूते पहनना उस दौर में, बेटे-बेटियों की पहचान हुआ करती थी। जब पिता ने उसे वापस अपनाया, तो वह महज़ रहम नहीं दिखा रहा था — वह उसे फिर से अपने घर, अपने दिल और अपनी जायदाद में वही अधिकार दे रहा था। ये हैरान करने वाली बात है कि वह बेटा, जिसने अपनी पहली विरासत को बर्बाद कर दिया था, अब दोबारा उसका वारिस बन गया। पिता ने न केवल उसे माफ़ किया, बल्कि उस पर फ़िर से यक़ीन किया — एक नई शुरुआत, एक और मौका दिया। (रोमियों ८:१७)
क्या आपकी ज़िंदगी में भी कुछ ऐसी चीज़ें हैं — जैसे गुनाह, आदतें या सोच के ढंग — जो आपको अंदर ही अंदर खोखला कर रहे हैं और जिनसे मुड़कर लौटना ज़रूरी है?
आज ही उन्हें छोड़ने का चुनाव करें और अपने आसमानी पिता की मोहब्बत भरी बाँहों में लौट आइये। मैं आपसे वादा करती हूँ; वो बाँहें फ़ैलाकर आपका इंतज़ार कर रहा है।