ख़ुदा आपको मोहब्बत करने से कभी थकता नहीं।

हाल ही में मैंने अपने घर के स्टूडियो की दीवारों पर हल्के, आवाज़ रोकने वाले साउंड पैनल लगाने की कोशिश की। मेरा इरादा था कि कोई ऐसी चिपकने वाली ग्लू इस्तेमाल करूँ, जो पैनलों को मज़बूती से थामे रखे और भविष्य में हटाने पर दीवारों को भी नुक़सान न पहुँचाए। मैंने टेप, ग्लू और कई और तरीक़े आज़माए—मगर नतीजा वही रहा। पैनल टिके ही नहीं, बार-बार गिरते रहे। आख़िरकार, थक-हार कर मुझे यह कोशिश छोड़नी पड़ी।😒
हमारी ज़िंदगी में भी कुछ ऐसा ही होता हैं।
हम अक़्सर अपनी उम्मीदें उन चीज़ों पर टिकाते हैं—नौकरी, शिक्षा, रिश्ते या दोस्ती—जो देखने में तो बहुत मज़बूत मालूम होते हैं, मगर वक़्त के साथ ढीले पड़ जाते हैं, मिट जाते हैं या बिख़र जाते हैं।
वे थोड़े वक़्त तक हमारा सहारा बनते हैं, मगर हमेशा के लिए नहीं।
लेकिन एक ऐसा रिश्ता है जो कभी कमज़ोर नहीं पड़ता, बल्कि मज़बूत होता जाता है; एक ऐसी मोहब्बत है जो कभी ठुकराती नहीं, बल्कि हमेशा गले लगाती है — और वो है ख़ुदा की “अगापे मोहब्बत”।
*"ख़ुदावंद का शुक्र अदा करे, क्योंकि वो भला है; और उसकी मोहब्बत क़ायम रहती है।" – भजन संहिता १३६:१
*"क्योंकि ख़ुदा भला है; उसकी मोहब्बत क़ायम रहती है, और उसकी वफ़ादारी पीढ़ी दर पीढ़ी बनी रहती है।" – भजन संहिता १००:५
*"सदा से सदा तक, ख़ुदावंद की मोहब्बत उन पर बनी रहती है जो उसके आदरयुक्त खौफ़ में जीते हैं और उसकी धार्मिकता उनके बच्चों के बच्चों पर बनी रहती है।" – भजन संहिता १०३:१७
इन आयतों की ख़ूबसूरती इन अल्फ़ाज़ में है: “हमेशा क़ायम” और “सदा से सदा तक”।
दुनियावी चिपकाने वाले साधन, वक़्त के साथ ढीले पड़ जाते हैं, लेकिन ख़ुदा की “अगापे मोहब्बत” हमेशा और सदा से सदा तक बनी रहती है - आग़ाज़ से अंजाम तक़।
वो मोहब्बत: - दुख़-दर्द का मरहम है। - उलझन-भरे सवालों की सुलझन है। - अँधेरी और गहरी ख़ाइयों में, चमकती रोशनी है।
वो मोहब्बत हमारी नाक़ामियों का वज़न, हमारे शक़ के तूफ़ान और वक़्त की थकान को भी संभाले रहती है。
याद रखिए—ख़ुदा कभी आपसे मोहब्बत करने से थकता नहीं!
आज उसकी इस बेपनाह मोहब्बत के लिए शुक्रगुज़ार रहें! 🙏

