जब मैं दुआ करता हूँ, तो इत्तेफ़ाक़ होते हैं। - विलियम टेम्पल

दुआ की ७ अज़ीम वजहें के आज हम पाँचवे दिन पर हैं—और आज की वजह बिल्कुल साफ़ है: क्योंकि दुआ असरदार है!
अपनी बड़ी मुश्किलों, गहरी ख़्वाहिशों और सच्चे इक़रार को ख़ुदा के सामने रखने के साथ-साथ, मैंने ये आदत बना ली है कि दिनभर की छोटी-छोटी बातों में भी उससे मदद माँगती रहूँ।
मैं अक़्सर अपने होंठों से छोटी-छोटी दुआएँ करती हूँ, जैसे – “ख़ुदावंद, मुझे पार्किंग की जगह दिला दीजिए” या “पवित्र आत्मा, मुझे याद दिलाओं मैंने अपनी चाबी कहाँ रखी है?”
ज़्यादातर वक़्त, ये दुआएँ फ़ौरन क़बूल हो जाती हैं। कभी-कभी तो दुआ पूरी करने से पहले ही पार्किंग की जगह,या चाबी मिल जाती है।
बड़ी दुआओं के साथ भी यही हुआ है। पीछे मुड़कर देखती हूँ तो हैरत होती है कि कितनी दफ़ा ख़ुदा ने मेरी दुआ सुनी—और अक़्सर ऐसे तरीक़ों से, जिनके बारे में मैंने कभी सोचा भी नहीं था।
बे-शक़, कुछ लोग कह सकते हैं कि “ये तो बस इत्तेफ़ाक़ है,” और दुआ असर करती है इसका कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं है। मगर कैंटरबरी के पूर्व मुख्य पासबान, विलियम टेम्पल ने कहा था:
“जब मैं दुआ करता हूँ, तो इत्तेफ़ाक़ होते हैं; जब नहीं करता हूँ, तो नहीं होते हैं।”
मैंने भी मेरी ज़िंदगी में यही अनुभव किया है।
बाइबल भी हमें यक़ीन दिलाती है कि दुआ असरदार है:
*“एक धार्मिक इंसान की दुआ, ताक़तवर और असरदार हैं।” – याकूब ५:१६
और:
*“दुआ में माँगी हर चीज़ हासिल होगी, अगर आप ईमान रखेंगे।” – मत्ती २१:२२
आज मैं आपको यह चुनौती देती हूँ कि अपनी अधूरी ज़रूरतों और अब तक पूरी न हुई दुआओं पर ध्यान देने के बजाय, उन तमाम 'इत्तेफ़ाक़ात' और मौकों को याद कीजिए जो पहले ही हो चुके हैं—और उनके लिए दिल से ख़ुदा का शुक्र अदा कीजिए।

