दुआ, हमें अंदर से बाहर तक बदल देती है

कल हमने यह बात की थी कि दुआ आपका ध्यान आपकी मसलों से हटाकर ख़ुदा के मंज़िलों पर ले जाती है। आज मैं एक और बात आपके साथ साझा करना चाहती हूँ, जो दुआ के वक़्त आपके अंदर होती है—इस बार आपकी ख़्वाहिशों में।
मैं पहले भी कह चुकी हूँ कि मुझे मीठा खाना बेहद पसंद है। केक, चॉकलेट और आइस क्रीम से दूर रहना मेरे लिए काफ़ी मुश्किल है। लेकिन इस आदत को क़ाबू करने के लिए मैंने कुछ तरीक़े ढूँढ लिए हैं।
मिसाल के तौर पर, जब मैं अपने दाँत साफ़ कर लेती हूँ या एक गिलास पानी पी लेती हूँ, तो मुँह का स्वाद बदल जाता है और अचानक वो चाह ख़त्म हो जाती है।
इसी तरह दुआ भी हमारी “ज़ेहनी ख़्वाहिशों” पर काम करती है - जिन्हें बाइबल “आज़माइशें” कहती है। और जब हम इन आज़माइशों के आगे झुक जाते हैं, वही गुनाह का निर्माण होता है।
आज़माइशों और वासनाओं से बचे रहने के लिए, यीशु मसीह ने दुआ की इस अहमियत पर ज़ोर दिया है:
*“जागते रहे और दुआ करते रहे ताकि तुम आज़माइश में न फ़से। राज़ी है रूह लेकिन कमज़ोर है ये शरीर।” – मरकुस १४:३८
यहाँ तक कि यीशु मसीह ने जिस दुआ को पहाड़ पर सिखाया था—उसमें भी आज़माइश से हिफ़ाज़त की दरख़्वास्त शामिल किया था:
*“और हमें आज़माइश में न डाल, बल्कि हमें शैतान से बचा।” – मत्ती ६:१३
जब भी आपको महसूस हो कि आप किसी ऐसी वासना के सामने झुकने वाले हैं—चाहे वो लालच हो, हवस, झूठ, ईर्ष्या, घमंड, ख़ुदगर्ज़ी, आलस, ग़ुस्सा या और कुछ—तो एक पल ठहरकर दुआ करें।
एक छोटी-सी दुआ भी आपका ध्यान उस आज़माइश से हटाकर, आसमानी ख़ुदा की मोहब्बत और फ़ज़ल भरी बाहों की तरफ़ मोड़ सकती है।
मैंने ख़ुद महसूस किया है कि जब मैं अपना दिन ख़ुदा के हुज़ूरी में, दुआ से शुरू करती हूँ, तो मैं ज़्यादा मोहब्बत करने वाली और दरियादिल बन जाती हूँ। मैं जल्दी ग़ुस्सा नहीं करती और न ही झुंझलाती हूँ।
दुआ—चाहे वो हमारी हालात को बदले या न बदले—हमें अंदर से बाहर तक बदल देती है।

