नेकदिल की दुआ, ख़ुदा को भाती है।

सोमवार मुबारक! ✌🏼
कई साल पहले, कॅमरॉन और मैं अपने दोस्तों से मिलने गए थे जिनकी बेटी तक़रीबन ३ साल की थी। वो उस प्यारे-लेकिन-थकाने वाले दौर में थी जहाँ हर बात पर सिर्फ़ एक सवाल करती थी—“क्यों?”
उसके ‘क्यों’ का जैसा भी जवाब दे —चाहे वो बिल्कुल समझ आए या ना आए—वो आपकी ओर देखती, गर्दन तिरछी करती और फिर पूछती: “क्यों?”😅 आख़िरकार मैंने मदद के लिए उसकी माँ की तरफ़ देखा, लेकिन वो बस हँस कर ख़ामोश रही। उस बच्ची की ‘क्यों’ को सुलझाने की हर कोशिश, नाक़ाम हुई। 😂
जितना प्यारा वो लम्हा था, मुझे पूरा यक़ीन है कि उसके माँ-बाप को भी राहत मिली होगी जब वो दौर गुज़र गया। 😅
मगर सच तो यह है कि कभी-कभी हमें भी रुक कर वही एक सवाल ख़ुद से पूछना चाहिए—“क्यों?”
इस हफ़्ते मैंने ख़ुद से यही पूछा—“हमें दुआ क्यों करनी चाहिए?” ये इसलिए नहीं कि मुझे इसके अहमियत पर शक़ है, बल्कि इसलिए कि मैं ख़ुद को—और आपको—याद दिला सकूँ कि यह इतना ज़रूरी क्यों है।
आने वाले दिनों में हम दुआ करने के ७ अज़ीम वजहें को देखेंगे - और सबसे पहले, शायद सबसे अहम वजह से शुरू करते हैं: यह ख़ुदा को भाता है।
*“ख़ुदा, गुनहगार की क़ुर्बानियों से नफ़रत करता है, लेकिन नेकदिल की दुआ, ख़ुदा को भाती है।” – नीतिवचन १५:८
*“मैं तुमसे दरख़्वास्त करता हूँ कि सबसे पहले तमाम लोगों के लिए इल्तजा, दुआ, सिफ़ारिश और शुक्रगुज़ारी की जाए”, यह अच्छी बात हैं और हमारे उद्धारकर्ता ख़ुदा को भाता भी है। – १ तीमुथियुस २:१,३
हमारी दुआएँ ख़ुदा को बेहद पसंद हैं। और यही एक वजह काफ़ी होनी चाहिए। 😉
लेकिन अगर आप ग़ौर करें तो यह कितनी अनोखी और प्यारी बात है कि वही ख़ुदा जिसने सारी क़ायनात का निर्माण किया, हमारी दुआओं से कभी ऊबता नहीं, न ही थकता है। बल्कि, उसे हमारी दुआएँ बहुत भाती हैं।
ख़ुदा कोई थका हुआ माता-पिता के समान नहीं है जो लगातार सवालों से परेशान हो जाए। नहीं! आपकी दुआओं का, वो तो इंतज़ार करता है। आपकी अर्ज़ी उसकी मर्ज़ी है。
*“हर वक़्त ख़ुश रहे, हमेशा दुआ करते रहे और हर हाल में शुक्रगुज़ार रहे; क्यूँकि यही तुम्हारे लिए मसीह यीशु में, ख़ुदा की मर्ज़ी है।” – १ थिस्सलुनीकियों ५:१६-१८
आज की शुरुआत, दुआ से करें। निडर हो कर, बिना किसी संकोच के, ख़ुदा के सामने अपनी अर्ज़ियाँ पेश करे और अपना दिल उसके हवाले करे। वो आपकी बातें सुन रहा है।

