क़ुसूर कहता है: मैंने ग़लती की हैं - शर्म कहती है: मैं ही ग़लती हूँ।

यह सच है कि मेरी पत्नी जेनी और मेरे बीच कोई राज़ नहीं है। शादी से पहले ही हमने तय कर लिया था कि हम एक-दूसरे से सब कुछ साझा करेंगे—अपना अतीत, अपनी असफलताएँ, और वो बातें भी, जो हमने कभी किसी और से कहने की हिम्मत नहीं जुटाई थीं।
मैं झूठ नहीं बोलूँगा—इनमें से कुछ बातों को ज़ाहिर करना आसान नहीं था।
इस डर से इनक़ार नहीं किया जा सकता कि क्या होगा अगर वह मेरी ज़िंदगी, मेरी संस्कृति या परवरिश के कुछ पहलुओं को समझ न पाए? या अगर यह उसके लिए बहुत ज़्यादा हो, और वह मुझसे दूर चली जाए?
मेरे सामने एक चुनाव था—या तो मैं शर्म के बोझ तले ख़ामोश रहूँ, अपने टूटेपन को छिपा कर हमारी शादी को एक नकली, और झूठी बुनियाद पर खड़ा कर दूँ; या फ़िर सच पर यक़ीन करूँ—चाहे वह कितना भी कड़वा क्यों न हो—क्योंकि सच्चाई हमेशा बेहतर चुनाव है, और आख़िरकार वह एक मज़बूत चट्टान बन जाती है।
यह महज़ शादी से पहले का चुनाव नहीं, बल्कि एक ऐसा फ़ैसला है जो हमें रोज़ाना लेना होता है।
ख़ासकर तब, जब हमें लगे कि क़ुसूर का एहसास धीरे-धीरे हमारे दिल में घर करने लगा है। क्योंकि शर्मिंदगी, क़ुसूरवार पर नक़ाब डालने की कोशिश करती है और आज़ादी हासिल करने से रोकती है।
और इसी का फ़ायदा उठाकर, शैतान हमारे लिए जाल बिछाता है。
"जो भी अपने गुनाह छिपाता है, वह असफ़ल होता हैं, लेकिन जो उन्हें क़बूल करके उनका इनक़ार करता है, उसे रेहमत हासिल होती है।" – नीतिवचन २८:१३
शर्म हमें यह यक़ीन दिलाती है कि अंधकार में छिपी बातों को रोशनी में लाना, उन्हें छुपाए रखने से भी मुश्किल है—या यह कि सच्चाई बेनक़ाब होने पर, हमें ठुकरा दिया जाएगा।
क़ुसूर कहता है: मैंने ग़लती की हैं - शर्म कहती है: मैं ही ग़लती हूँ।
ख़ुदा हमें सब कुछ उसकी रोशनी में ज़ाहिर करने की दावत देता है, ताकि अंधकार का हम पर कोई असर न रहे।
राजा दाऊद इस सच को अच्छी तरह समझता था, जब उसने कहा:
"मैंने अपना गुनाह तुझसे ज़ाहिर किया और अपनी अधर्मता को बेनक़ाब किया; मैंने कहा, ‘मैं ख़ुदा के सामने अपने सारे अपराधों का इक़रार करूँगा।’ और तू ने मेरे गुनाह और क़सूर को माफ़ कर दिया।" – भजन संहिता ३२:५
शर्म और क़सूर की ताक़त तोड़ने का और उसे बेअसर करने का एक और बेहतरीन तरीका है, अपने गुनाह और ग़लतियाँ किसी और ईमानदार दोस्त से इज़हार करना (याकूब ५:१६)।
आज, शर्म और क़सूर को बेनक़ाब करके आज़ादी की तरफ़ दौड़ने का यह फ़ैसला लें। ख़ुदा से और किसी ईमानदार मसीही से अपने गुनाहों का इक़रार करके माफ़ी मांगे ताकि आप शर्मिंदगी और क़सूर के एहसास पर जीत हासिल कर सके और ख़ुदा के मुक़म्मल सुकून में जी सकें।

