मुझ में तुम्हे सुक़ून मिले

कभी-कभी मेरे ज़हन में यह सवाल उठता है — एक फ़िक्र से आज़ाद ज़िंदगी, कैसी होगी? बेहद सुक़ूनभरी? आपका क्या ख्याल हैं?
लेकिन फ़िर मुझे ख़ुदा के इस वादे की याद आती हैं:
"फ़िक्र न करें, बल्कि हर बात के लिए दुआ करें। अपनी ज़रूरतें, ख़ुदा के सामने रखें और उसने अब तक़ जो किया है, उसके लिए शुक्रगुज़ार रहे। फ़िर तुम ख़ुदा का ऐसा सुक़ून महसूस करोगे जो समझ से परे है - और जैसे तुम मसीह यीशु में जी रहे है, वही सुक़ून, तुम्हारे दिलों और मनों को महफ़ूज़ रखेगा। – फिलिप्पियों ४:६-७
पुर-सुक़ून का मतलब बिगड़ें हालातों की गैर-मौजूदगी नहीं, बल्कि तेज़ तूफानों और अँधेरी रातों में भी ख़ामोश रहना और दिल को क़ाबू में रखना हैं।
दर्द, टकराव, तकलीफ़ और ऐसी कई नकारात्मक चीज़ें इस ज़िंदगी का हिस्सा हैं, और यही बात यीशु मसीह भी अपने क़लाम में हमें याद दिलाता हैं :
“मैंने ये बातें तुमसे इसलिए कही हैं ताकि तुम्हें मुझमें पुर-सुकून मिले। इस धरती पर, तुम्हें मुश्क़िलों का सामना करना पड़ेगा, लेकिन दिल को थामे रखना, क्योंकि मैंने दुनिया पर जीत हासिल की है।” – यूहन्ना १६:३३
बे-फ़िक्र ज़िंदगी तभी मुमकिन है जब हम अपनी सारी परेशानियों को ख़ुदा के हवाले कर दें और उसके पुर-सुकून ग़लियारों में झूमें।
क्या बे-मतलब के फ़िक्र से क़िसी का भला हुआ हैं? शायद नहीं! फ़िक्र सिर्फ़ आपके सुक़ून को ही नहीं चुराती, बल्कि साथ ही…
- आपकी ताक़त छीन लेती है।
- आपके मन में घर करती हैं।
- रिश्तों में तनाव और दरार लाती है।
- आपके हर दिन के फ़ैसलों में रूकावट लाती है।
- और आपके शारीरिक व मानसिक सेहत पर भी दबाव डालती है।
ख़ुदा हमें अपनी परेशानियाँ के बदले, उसका सुक़ून अता करता है।
यीशु मसीह यह फ़रमाता हैं:
“मैं दुनियावी और उभरा सुकून नहीं, बल्कि अपना पुर-सुकून तुम्हारे हवाले करता हूँ। तुम्हारा दिल न तो फ़िक्रमंद रहे, और न ही ख़ौफ़ज़दा।” – यूहन्ना १४:२७
आज मैं आपके लिए — २ थिस्सलुनीकियों ३:१६ और फिलिप्पियों ४:७ के मुताबिक़ ये दुआ करती हूँ:
प्रभु यीशु मसीह, तू पुर-сुक़ून का मालिक़ और सोता हैं। क्या तू को हर वक़्त और हर हाल में अपना पुर-सुक़ून अता करेगा जो उसके दिल और ज़हन की हिफ़ाज़त करे? यीशु मसीह के नाम में, आमीन।

