ख़ुदा आपकी तमाम ज़रूरतों को, अपने बेशुमार ख़ज़ाने के मुताबिक़, पूरा करेगा।

आपको क्या चाहिए?
अब, मैं जानती हूँ कि ये सवाल कभी-कभी सख़्त और गुस्से वाला लग सकता हैं — लेकिन मेरा मतलब बिल्कुल वैसा नहीं है।मैं आपसे दिल से पूछना चाहती हूँ: “आपको क्या चाहिए? या आपकी ज़रूरत क्या है?” ख़ुदा भी आपसे यही पूछ रहा है。
*"फ़िक्र न करें, बल्कि हर बात के लिए दुआ करें। अपनी ज़रूरतें, ख़ुदा के सामने रखें और उसने अब तक़ जो किया है, उसके लिए शुक्रगुज़ार रहे। फ़िर तुम ख़ुदा का ऐसा सुक़ून महसूस करोगे जो समझ से परे है - और जैसे तुम मसीह यीशु में जी रहे है, वही सुक़ून, तुम्हारे दिलों और मनों को महफ़ूज़ रखेगा। – फिलिप्पियों ४:६-७
तो मैं फिर से पूछती हूँ — क्या आपको मालुम है कि आपको हक़ीक़त में क्या चाहिए?
ख़ुदा आपको बिना किसी डर या झिझक, अपने हर ज़रूरत को उसके सामने रखने का न्योता देता हैं:
*“इसलिए हम पूरे यक़ीन से उस फ़ज़ल के सिंहासन के पास आएं, ताकि हम रहमत पाएँ, और वह फ़ज़ल हासिल करें जो मुसीबत और ज़रूरत के वक्त हमारा मददगार हो।" – इब्रानियों ४:१६
कुछ वक़्त निकालकर आपकी ज़िंदगी की सारी ज़रूरतों की एक सूचि तैयार करें - और उसमे अपने जज़्बात और आत्मिक ज़रूरतों को भी जोड़े!
सूची लिखते समय, इस वादे को याद रखें:
*”ख़ुदा आपकी तमाम ज़रूरतों को, अपने बेशुमार ख़ज़ाने के मुताबिक़, पूरा करेगा।” - फिलिप्पियों ४:१९
जब भी मैं ठहर कर गहराई से सोचती हूँ कि मुझे ज़िंदगी में असल में क्या चाहिए, तो अक्सर जवाब मेरी उम्मीदों से बिल्कुल अलग होता है।
शुरुआत में, मेरी सूची में कई दुनियावी और व्यावहारिक ज़रूरतें होती हैं (जैसे, किसी प्रोजेक्ट के लिए पैसे की ज़रूरत, सही लोग जो मदद कर सकें, किसी इवेंट के लिए मुनासिब जगह और फिर सारी योजनाओं का सही तरीक़े से जगह पर बैठ जाना वग़ैरह)।
मगर जब मैं थोड़ी देर और यीशु मसीह के हुज़ूरी में ठहरती हूँ और गहराई से झाँकती हूँ, तो जवाब अक्सर यही होता है: मुझे ज़िंदगी में, क़दम-दर-क़दम, सिर्फ़ यीशु मसीह की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है。
क्या आपका भी कुछ ऐसा ही ख़याल है?

