वो डटा रहा, क्योंकि उसने उस ग़ैर-मंज़र का दीदार किया।

क्या आपने कभी मिस्टर इंडिया फ़िल्म देखी है? उस फ़िल्म में हीरो एक ख़ास घड़ी पहनता है जो उसे इंसानी आँखों से ग़ायब कर देती है। हालाँकि उसे कोई देख नहीं सकता, लेकिन वो पूरी तरह मौजूद रहता है—नज़रों से ओझल होकर भी, वो नाइंसाफ़ी से लड़ता है और बेगुनाहों की हिफ़ाज़त करता है।
कुछ हद तक, हमारी ज़िंदगी का सफ़र भी ख़ुदा के साथ ऐसा ही महसूस होता है। हम हमेशा उसे अपनी इंसानी आँखों से नहीं देख पाते, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वो ग़ायब हैं। मिस्टर इंडिया की घड़ी की तरह, ख़ुदा को, अदृश्य रह कर भी काम करने के लिए, किसी यंत्र की ज़रूरत नही है। उसकी ताक़त, मौजूदगी और मक़सद—हमेशा काम में लगे रहते हैं—ख़ामोशी में, वफ़ादारी से और पूरी तरह से। मूसा इसे जानता था。
*“फ़िरऔन राजा के क्रोध के डर से नहीं, बल्कि ईमान से मूसा ने मिस्र को छोड़ दिया। वो डटा रहा, क्योंकि उसने उस ग़ैर-मंज़र का दीदार किया।” इब्रानियों ११:२७
हालाँकि मूसा के पास डरने की कई वजहें थीं — वह फ़िरऔन का सामना कर रहा था, जो उस दौर का सबसे ताक़तवर मिस्र का बादशाह था। वह उस मुल्क को छोड़ रहा था जो बरसों से उसका घर था, और एक अंजान सफ़र पर निकल रहा था, जहाँ उसके अपने ही लोग बार-बार उस पर शक़ करेंगे, सवाल उठाएंगे, और यहां तक कि उसके ख़िलाफ़ बग़ावत भी करेंगे।
फिर भी, इब्रानियों का लेखक कहता है कि मूसा को फ़िरऔन के क्रोध से डर नहीं लगा। क्यों? क्योंकि "उसने उसे (ख़ुदा) देखा जो अदृश्य था"।
ईमान हमें यही सिखाता है कि जो नज़रों से ओझल है, वह अक्सर उससे कहीं ज़्यादा ताक़तवर होता है जो हमारी आँखों के सामने मौजूद है। मूसा, ख़ुदा के दिए हुए मंज़र पर अटल रहा— एक ऐसा नज़रिया जो अदृश्य में भी यक़ीन रखने की ज़िद्द करता है।
उसकी नज़र न ही फिरऔन के क्रोध पर, न ही मिस्र की मिट्टी पर और न ही अपने अंदर के डर पर थी बल्कि उस ताक़त (ख़ुदा) पर थी जो अज़ीम और सर्वशक्तिमान हैं।
ख़ुदा, हमेशा हमारी मदद के लिए हाज़िर है और हमारी कमज़ोरी में भी, ख़ामोशी से हमारी ताक़त है। हर दिन और हर पल उसका अदृश्य हाथ हमारी भलाई के लिए कार्य कर रहा है। — भजन संहिता ४६:१
क्या आप उस ग़ैर-मंज़र और अदृश्य को देखने का हौसला रखेंगे? क्या आप अपनी नज़रें उलझनों और तूफ़ानों से ऊपर उठाकर उस यीशु मसीह पर टिकाएँगे, जो आपके ईमान का आग़ाज़ भी है और अंजाम भी? — इब्रानियों १२:२

