बाहरी तौर पर आज्ञाकारी, पर दिलसे कोसों दूर।

अगर एक बात मैं ज़ोर से छत पर चढ़कर पुकारना चाहूंगी, तो वो ये होगी:
ख़ुदा को महज़ आपकी अदाकारियाँ, लफ़्ज़ या क़ुर्बानियाँ नहीं चाहिएं — वह तो आपका सच्चा और पूरा दिल चाहता है।
अक्सर मेरी मुलाक़ात ऐसे मसीहियों से होती है जो आत्म-धार्मिकता के जाल में उलझ चुके होते हैं — जिन्हें ये लगने लगता है कि उनकी सेवकाई ही उनके और ख़ुदा के रिश्ते से कहीं ज़्यादा मायने रखती है।
योना की क़िताब में यह ज़ाहिर है।
योना को एक नबी और ख़ुदा का सेवक माना जाता है. २ राजा १४:२५ में लिखा है कि उसने इस्राएल की सरहदों के पुनर्स्थापित होने की भविष्यवाणी की थी और ठीक वही हुआ।
ख़ुदा, योना से सीधे बात करता था और योना उसकी आवाज़ सुनने का आदी था। वो खुद को ख़ुदा का एक इबादतगुज़ार भी बताता था (योना १:९)। मुमकिन है, वो ख़ुदा की क़ानून को बख़ूबी जानता भी था और उस पर अमल भी करता था।
मगर दिलचस्प बात ये है कि जब योना के ज़रिये, ख़ुदा एक पूरे शहर को बचाना चाहता है, तो योना खफ़ा हो जाता है। असल में योना ख़ुदा से कहता है (अगर मैं अपने लफ़्ज़ों में कहूं), "मुझे पहले ही पता था कि तू ऐसा ही कुछ अजीब सा करेगा! मुझे पता था कि तू माफ़ कर देगा और इसी वजह से मैं वहां जाना नहीं चाहता था!" (योना ४:२)
उसने वही किया जो ख़ुदा चाहता था मगर उसका दिल जैसे पत्थर सा था।
वो न तो नीनवे के खोए हुए लोगों पर रहम कर सका और न ही उनके उद्धार की ख़ुशी में ख़ुदा के साथ शामिल हो सका।(योना ४:११)
यह साफ़ है कि योना ने, बाहरी तौर पर ख़ुदा की आज्ञा मान ली, लेकिन उसका दिल ख़ुदा से कोसों दूर था।
आज्ञाकारी होना यक़ीनन क़ीमती है, लेकिन ख़ुदा के साथ दिल का मेल होना उससे भी कहीं ज़्यादा ज़रूरी है।
आपका दिल इस वक़्त कहाँ है?
क्या आपने अपने दिल को पूरी तरह से ख़ुदा की मुकम्मल मर्ज़ी के हवाले कर दिया है? या कहीं आपके अंदर कोई छोटा सा हिस्सा अभी भी इस सोच में डूबा है, कि ज़िंदगी के कुछ हालातों में, ख़ुदा आपसे कुछ और उम्मीद रखता है, और विपरीत नतीजा देने का क़र्ज़दार है?
ना ही ख़ुदा आपका क़र्ज़दार है, ना आप किसी चीज़ के हक़दार - आज आप जो कुछ भी है वो सिर्फ़ और सिर्फ़ उसकी अज़ीम फ़ज़ल का नतीजा है।

