ख़ुदा आपको समझता है।

क्या कभी किसी से बात करते हुए ऐसा महसूस हुआ है कि उसकी बातें आपके समझ से परे हैं, या सब कुछ आपके सिर के ऊपर से जा रहा है? अगर आप शादीशुदा हैं, तो शायद आप मेरी बात बेहतर समझ पाएँगे। 🤪
चाहे आप दोनों में कितनी भी समानताएँ क्यों न हों, फिर भी कुछ ऐसी बातें, ऐसी पसंदें होती हैं जो आपके समझ से बाहर होती हैं, हैं न ?
मिसाल के तौर पर, मुझे समुंदर में तैरना, रेत पर चुपचाप लेटना और कोई प्यारी सी क़िताब पढ़ना बेहद भाता है। समुंदर की ठंडी मखमली हवा, लहरों की सुक़ून भरी सरगोशी और उस नीले पानी का नज़ारा — मेरे लिए इससे ज़्यादा राहत और सुक़ून किसी चीज़ में नहीं। ये तमाम लम्हे मुझे बार-बार ख़ुदा की अज़ीम फ़ज़ल, उसकी ख़ूबसूरती और शान-ओ-शौकत की याद दिलाते हैं।
लेकिन कॅमरॉन तो मुंबई में समुंदर के बिल्कुल क़रीब पले-बढ़े हैं — शायद यही वजह है कि उन्हें धूप, गर्मी और वो चिपचिपा मौसम कुछ खास नहीं भाता, ख़ासतौर पर जब रेत पैरों से जूतों तक़ और फ़िर गाड़ी और घर तक़ फैल जाती है। उन्हें समुंदर पसंद तो है, मगर किसी रेस्टोरेंट या दूर किसी ठंडी छांव से उसका नज़ारा करना ज़्यादा पसंद है। यह बात मेरे लिए अब तक समझ से परे है।🤷🏼♀️
और ठीक वैसा ही एहसास, मुझे योना की कहानी पढ़ते वक़्त होता है।
कहानी की शुरुआत में, योना को ख़ुदा की तरफ़ से एक बिल्कुल सीधी और साफ़ बुलाहट मिलती है — वो भी बिना किसी उलझन या शक़ के। हम में से ज़्यादातर लोग तो शायद ऐसी बुलाहट का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं, है ना? लेकिन योना? उसने बिना देर किए सीधा उल्टा रास्ता चुना — नाफ़रमानी का रास्ता।🤷🏼♀️ (योना १:२–३)
आख़िरकार, वो अपने दिए हुए बुलाहट को निभाता है और नीनवे के लोगों से बस यही कहता है, “चालीस दिन और, और नीनवे बर्बाद हो जाएगा।” (योना ३:४) और नतीजा? पूरा शहर पश्चाताप करता है और ख़ुदा उन्हें बक़्श देता है! ज़रा सोचिए — कितने पासबानों और प्रचारकों का ये सपना होता है कि उनके पूरे शहर के लोग इतनी ‘आसानी’ से पश्चाताप करें और कलीसिया का हिस्सा बन जाएँ! मगर योना? वो इस चमत्कारी नतीजे से नाराज़ और नाखुश हो जाता है! (योना ४:१)
योना मेरे समझ से परें हैं — मगर ख़ुदा उसे समझता है!
और चाहे उसका रवैया कितना भी हैरान कर देने वाला क्यों न हो, ख़ुदा ने उसे कभी अकेला नहीं छोडा :
- उसका रुख मोड़ने के लिए एक तेज़ तूफ़ान भेजा। (योना १:४)
- उसकी जान बचाने के लिए एक बड़ी मछली भेजी। (योना १:१७)
- उसने मछली के पेट से भी उसकी फ़रियाद सुनी। (योना २:१०)
- उसे दूसरा मौक़ा भी दिया। (योना ३:१)
- उसकी नाराज़गी में भी, एक नहीं पर दो बार उससे मुलाक़ात की।(योना ४:१,३–४,९–११)
ज़िंदगी की इस दौड़ में हो सकता है कि हर कोई आपको समझ न पाए — कभी आपका अंदाज़ उन्हें अजीब लगे, कभी आपकी ख़ामोशी सवाल बन जाए। मगर एक बात हमेशा याद रखिए: ख़ुदा आपके दिल की अनकही, बेज़ुबान बातों को भी गहराई से समझता है। वह आपसे बेहद राज़ी है।
वो कभी आपको तन्हा नहीं छोड़ेगा और आपके लिए हमेशा हाज़िर है। 💛

