आप ख़ुदा की सबसे क़ीमती अमानत है।

कुछ दिन पहले मैं गाड़ी चलाते हुए रेडियो पर एक शो को सुन रहा था। उसमें लोगों से पूछा गया कि उनकी सबसे " बेफ़ायदा कला" क्या है? उनके जवाब सुनकर मुझे हसी आई—कोई ऐसा था जो ग़ज़ब की रफ़्तार से पूरी हिंदी वर्णमाला को उल्टी दिशा में बोल सकता था, तो कोई लड़की थी जो हू-ब-हू फ़ायर ट्रक की आवाज़ निकाल सकती थी।
ये शायद क़ाबिल-ए-तारीफ़ है लेकिन फ़ायदेमंद? … ना! 🤣
असल में, किसी भी कला का फ़ायदा या बेफ़ायदा उसके इस्तेमाल करने से ज़ाहिर होता है। इस मशहूर कहानी में भी यीशु मसीह ने एक फ़ायदेमंद कला सिखाई थी - "भरोसेमंद ज़िम्मेदारी" (मत्ती २५:१४–३०)।
आज हम इस पर ज़रा ग़ौर करेंगे।
इस कहानी में जब यीशु मसीह "कला" की बात कर रहा था, तो वो कोई हुनर या क़ाबिलियत नहीं, बल्कि चाँदी के सिक्कों से भरी थैलियाँ थीं। उस दौर में, एक "चाँदी के सिक्के" की क़ीमत लगभग २० वर्षों की कमाई के बराबर थीं। आज के हिसाब से वो क़ीमत ₹४ करोड़ से ₹८ करोड़ तक हो सकती है! 😳
इससे, यीशु मसीह एक बहुत ही अहम बात समझाना चाहता था: उन सेवकों को बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी दी गई थी। यहाँ तक कि जिसे महज़ "एक" थैली मिली थी, उसके पास भी कुछ बेहद क़ीमती था।
और यक़ीन मानिए—आपकी और हमारी कहानी में ख़ुदा वो मालिक़ और हम सब उसके सेवक हैं।
तो फिर... ख़ुदा ने कौन-सी ज़िम्मेदारी हमारे हवाले की है?
हमे शायद वास्तविकता में करोड़ों रुपये नहीं मिले है लेक़िन उससे भी कई ज़्यादा कुछ और क़ीमती दौलत मिली है।
हमारे कई क़ाबिलीयतें सबको साफ़ नज़र आते हैं—वो हुनर जिनमें हम काफ़ी माहिर है, वो जज़्बा और जुनून जो हम लेकर चलते है, वो कला जो हमने सालों से विकसित की है।
मगर हमारी ये ‘चाँदी की थैलियाँ’ उससे कहीं ज़्यादा अहम हैं।
उस थैली में है, आपका परिवार, समाज में आपकी पहचान, आपकी शिक्षा, आपका वजूद, आपकी ज़िंदगी के तमाम तजुर्बे, आपकी हर साँस, हर मौक़ा जो आपको मिला है — और हर वह मुलाक़ात, हर वह लम्हा जो खुदा ने रोज़ाना आपके सामने रखे है, एक इनायत की तरह।
वो सब कुछ — जो आपकी पहचान को बनाता है और हर लम्हें में आपको 'आप' बनाता है।
आप ख़ुदा की सबसे अज़ीज़ अमानत है — वो अनमोल ख़ज़ाना, जो २० साल की कमाई से कहीं ज़्यादा क़ीमती है। आपकी ये ख़ूबसूरत ज़िंदगी, एक अज़ीम और बेमिसाल इन्वेस्टमेंट है, जिसकी ज़िम्मेदारी ख़ुद ख़ुदा ने आपके हवाले की है — अपने भरोसे, अपनी मोहब्बत और अपने मक़सद के साथ।"

