पिता की मोहब्बत और क़बूलियत बिल्कुल मुफ़्त है। – टिम केलर

मेरे माता-पिता और बड़े भाई-बहनों के मुताबिक़ मैं बचपन में काफ़ी शरारती थी।अब, मुझे पता है कि भारत में छोटे बच्चों को सज़ा देना– यानी मारना – एक आम बात मानी जाती है। लेकिन जहाँ मेरी परवरिश हुई है, वहाँ ऐसा होना इतना सामान्य नहीं था। फ़िर भी, मुझे कुछ ऐसे लम्हे ज़रूर याद हैं जब मेरे पिता का सब्र जवाब दे गया था। एक बार उन्होंने मुझे हल्के से लात मारी — और वही मेरे लिए इशारा था कि अब सीधे अपने कमरे में जाऊँ और तब तक बाहर न आऊँ, जब तक माफ़ी माँगने के लिए तैयार न हो जाऊँ।
कई साल बाद, एक बार एक पारिवारिक बातचीत के दौरान मैंने यूँ ही कह दिया, “मेरे पिता मुझे लात मारा करते थे।” - ये सुनकर मेरे माता-पिता ज़ोर से हँस पड़े और कहने लगे, “अरे, ऐसा तो शायद २ बार ही हुआ होगा!” और बस, उसी पल से ये बात हमारे घर में एक मज़ाकिया क़िस्सा बन गई। जब आज, मैं उस बात को याद करती हूँ, तो लगता है — अपने पिता के बारे में इससे ज़्यादा नाइंसाफ़ या ग़लत बात शायद मैंने कभी नहीं कही।
क़म से क़म वह उस छोटे बेटे जितना बेरहम तो नहीं था, जिसने अपने पिता से अपना हिस्सा माँगकर जैसे यह कहा — 'काश, तुम मर चुके होते!’ 😳(लूका १५:११-३२)
उसने असल में कहा था, “हे पिता, आपके जायदाद में जो मेरा हिस्सा हैं वो मुझे दीजिए।” (लूका १५:१२) लेकिन उस दौर और संस्कृति में, पिता के ज़िंदा रहते हुए विरासत माँग लेना बेहद बेइज़्ज़ती की बात मानी जाती थी। इसका मतलब था कि पिता को अपनी ज़मीन का हिस्सा बाँटना ही नहीं, बल्कि उसे बेचना भी पड़ता — और यूँ वो सिर्फ़ अपनी दौलत नहीं, बल्कि अपनी इज़्ज़त और समाज में अपनी हैसियत का भी नुक़सान उठाते।
हैरानी उस बेटे की गुस्ताख़ी पर नहीं थी, बल्कि उस पिता की मोहब्बत भरी हामी पर थी — जिसने बिना कोई सवाल किए सिर्फ़ इतना कहा: “हाँ।”
उस दौर के किसी भी मिडल ईस्टर्न पिता के लिए ऐसी बेइज़्ज़ती पर क़म से क़म ज़ोरदार डांट-फटकार तो तय थी और ज़्यादा संभावना थी कि वो बेटे को घर से बाहर कर देता।
इसमें कोई शक नहीं कि बेटे की इस मांग ने पिता का दिल तोड़ दिया। इंसानी फ़ितरत तो ये है कि ऐसी ठुकराहट पर इंसान ग़ुस्सा करता है, ताक़ि और चोट से खुद को बचा सके। लेकिन इस बाप ने ऐसा नहीं किया – उसके बेटे के लिए उसकी मोहब्बत और लगाव क़ायम का था।
बिलकुल हमारे आसमानी पिता की तरह।
हम चाहे जितनी दूरियां बना लें, चाहे अपनी हर ग़लती से उसे कितना भी चोट पहुँचाएँ, उसकी मोहब्बत हमारे लिए हमेशा बरसती रहती है।
आइए इस बेशुमार मोहब्बत के लिए उसका शुक्र अदा करें।
ऐ आसमानी पिता, तेरी बेपनाह और क़ायम रहने वाली मोहब्बत के लिए, तेरा लाख-लाख शुक्रिया। चाहे मेरी बातें या चाल-चलन से तुझे कितना भी दुख हुआ होगा, फिर भी तेरी दरियादिली से मुझे माफ़ी हासील होती है। मुझे उन लम्हों के लिए माफ़ कर, जब मैं तुझसे जुदा हुआ हूँ। यीशु मसीह के नाम में, आमीन।

