सबको ख़ुदा की फ़ज़ल से पाक और बेदाग़ क़रार दिया गया है।

क्या आप चाय या कॉफ़ी पीते हैं?चाय का शौक़ मुझे पीने से ज़्यादा, दूसरों को पिलाने का है। कुछ सालों में मैंने ऐसी चाय बनानी सीख ली है, जो दोस्तों के दिल तक पहुंचती है। अकसर मुझसे फ़रमाईश की जाती है और मैं भी पूरे दिल से एक प्याले में अपनी मोहब्बत घोल देता हूँ।
एक रविवार, चर्च के बाद हमारे कुछ क़रीबी दोस्त दोपहर के खाने के लिए हमारे घर आए थे। उनके साथ एक नया जोड़ा भी था, जिनसे हम पहली बार मिल रहे थे। खाने के बाद हमेशा की तरह मेरी चाय की फ़रमाईश हुई — वही मशहूर चाय, जिसे लेकर मेरे दोस्त अकसर तारीफ़ों के पुल बाँधते हैं। मैंने मेहमानों को ख़ुश करने के लिए दूध की नई बोतल खोली, ख़ास चाय पत्ती डाली, स्वादानुसार शक्कर और चाय मसाला भी मिलाया — मैंने एकदम दिल से वो चाय बनाई! लेकिन जैसे ही चाय का पहला घूंट लिया गया, सबके चेहरे पर एक हल्की सी उलझन तैर गई। वो वादा किया हुआ ज़ायका, कहीं खो सा गया था। अब जाँच-पड़ताल करने पर ज़ाहिर हुआ कि नई बोतल वाला दूध ही 'पुराना निकला' — यानी फटा हुआ था। और बस, उसी ने मेरी मेहनत और मेहमाननवाज़ी दोनों पर पानी फेर दिया।
इस कहानी से ये साफ़ ज़ाहिर होता है कि गलतियाँ हम सब से हो सकती हैं — फिर चाहे वो अपने काम में कितना भी माहिर क्यों न हो। यही सच्चाई हमें उन दस कुँवारियों की कहानी में भी दिखाई देती है, जहाँ सतर्कता और तैयारी की अहमियत उजागर होती है। (मत्ती २५)।
गौर करें कि बाइबल में ये नहीं लिखा है कि पाँच लड़कियाँ कुँवारी थीं और बाक़ी पाँच चरित्रहीन। नहीं — बाइबल साफ़-साफ़ कहती है कि वे सभी दस लड़कियाँ कुँवारियाँ थीं — पवित्र, बेदाग़ और दूल्हे के इंतज़ार में तैयार खड़ी थीं।
फिर भी, दसों सो गईं और दसों के दीये बुझने लगे। उन्होंने जागकर दूल्हे का इंतज़ार करना चाहिए था, लेकिन समझदार और नासमझ – दोनों ने गलतीयाँ की।यहाँ तक कि यीशु मसीह के चेले – उसके सबसे क़रीबी दोस्त भी – तब सो गए जब यीशु मसीह ने उनसे कहा था कि जागते रहो और दुआ करो (मत्ती २६:४०-४५)।
हम सब ग़लती करते हैं। हम सब नाक़ाम हो जाते हैं।
*“सब ने गुनाह किया है और सब खुदा के जलाल से महरूम हैं। लेकिन सबको ख़ुदा की असीम फज़ल से, जो मसीह यीशु में रिहाई के ज़रिए हासिल हुई, पाक़ और बेदाग़ क़रार दिया गया है।” – रोमियों ३:२३-२४
ईमान की असली शुरुआत तब होती है, जब हम यह मान लें कि हम ख़ुदा के गुनहगार हैं और हमारे लिए एक उद्धारक की बेहद ज़रूरत है। वो उद्धारक, यीशु मसीह है जो धर्मियों के लिए नहीं, बल्कि आप और हम जैसे गुनहगारों के लिए आया (१ तीमुथियुस १:१५-१६)! (*इस प्रोत्साहन के कुछ आयत मेरे अल्फ़ाज़ और अंदाज़ में लिखे गए हैं)

