ख़ुदा ने हमारी उलझन को सुलझाया

आप में कितनी लचक हैं?
कुछ सालों पहले, शादी के बाद, कॅमरॉन और मैं येशुआ मिनिस्ट्रीज़ के साथ एक कॉन्सर्ट के लिए कोलकाता में थे। लेकिन सब कुछ योजना के मुताबिक़ नहीं चल रहा था। मेरी नींद पूरी नहीं हुई, वहा उम्मीद से कहीं ज़्यादा ठंड थी और मेरे पास उस मौसम के लिए सही लिबाज़ भी नहीं थे।
एक पल ऐसा आया, जब मैंने कॅमरॉन की तरफ़ नाराज़गी से देखा और शिकायती अंदाज़ में कहा, “कोलकाता को सिटी ऑफ़ जॉय कहा जाता है, पर मेरी तो सारी ख़ुशी ही चली गई है!” 😩
कॅमरॉन मेरी इस ड्रामेबाज़ी पर मुस्कुराया, लेकिन शायद उसी पल उसे ये भी समझ आ गया कि जब चीज़ें मेरी योजना के मुताबिक़ नहीं चलतीं, तो मैं झुंझला जाती हूँ। ज़रूरत पड़ने पर मैं हालात के साथ समझौता कर सकती हूँ — मगर सच कहूँ, तो मुझे सबसे ज़्यादा सुकून तब मिलता है जब ज़िंदगी मेरी बनाई हुई योजना के मुताबिक़ चलती है। क्या आपके साथ भी ऐसा होता है? 😜
इस कहानी में उस भले सामरी को अपने योजना के खिलाफ़ जाने से कोई परेशानी नहीं थी। अपनी सुविधा की परवाह न करते हुए, उसने एक अजनबी की देखभाल की।
ये महज़ असुविधाजनक ही नहीं था, बल्कि बेहद उलझा हुआ भी था। ख़ून से लथपथ इंसान को पट्टियाँ बाँधना, घायल इंसान को अपने सवारी पर बिठाना और खुले हात उदारता से आर्थिक मदद का वायदा करना, ये सब सामरी की दरियादिली में शामिल था।
भले सामरी की मिसाल में जो बातें सामने आती हैं, वो तो अहम हैं ही — मगर जो बातें उसमें नहीं कही गईं, वो भी उतनी ही गहरी और अर्थपूर्ण हैं। मसलन, सामरी ने उस घायल व्यक्ति से कुछ भी मांगा नहीं, न कोई शर्त रखी। उसकी मोहब्बत बिल्कुल एक तरफ़ा और नि:स्वार्थ थी। और जब वह उसे सराय घर तक लेकर जाता है, तो सरायवाले से कहता है, ‘इसकी पूरी देखभाल करना; जो भी ज़रूरत पड़ेगी, मैं लौटकर चुका दूंगा।
इस बेशर्त और फ़ज़ल से भरी दरियादिली की मिसाल हमें ख़ुदा की दरियादिली की याद दिलाती है। ख़ुदा ने हमारी उलझन में क़दम रखा और हमारे उद्धार का पूरा इंतज़ाम किया। जब हम टूट चुके थे और खुद कुछ नहीं कर सकते थे तब उसने हमारे लिए सब कुछ कर दिया। क्रूस पर अपनी जान क़ुर्बान करके, उसने पूरी क़ीमत अदा की (रोमियों ५:८-९)。
हमें अब इसी दरियादिली को इस टूटे-बिखरे ज़माने पर ज़ाहिर करना हैं। क्या ये असुविधाजनक होगा? शायद।क्या ये उलझा हुआ होगा? अकसर।लेकिन शर्तों के साथ? कभी नहीं।

