हम किसी को दुनियावी नज़र से नहीं देखते

स्वतंत्रता दिन मुबारक। अगर आपसे कोई दिन छूट गया हो, तो जान लीजिए कि हम तीन चीज़ों को लिपटने और तीन चीज़ों को समर्पित करने सीरीज़ के चौथे दिन पर हैं।
अब तक हमने ये सीखा कि किन बातों को लिपटना है:
- ख़ुदा की हुज़ूरी
- ख़ुदा के उसूल
- ख़ुदा के लोग
आज हम उस पहले पहलू पर गौर करते हैं जिसे हमें समर्पित करना है — वो है: अपना अतीत।
पौलुस फिलिप्पियों ३:१३-१४ में लिखता है: "हे भाइयों, मेरी भावना यह नहीं कि मैं पकड़ चुका हूं: परन्तु केवल यह एक काम करता हूं, कि जो बातें पीछे रह गई हैं उन को भूल कर, आगे की बातों की ओर बढ़ता हुआ। निशाने की ओर दौड़ा चला जाता हूं, ताकि वह इनाम पाऊं, जिस के लिये परमेश्वर ने मुझे मसीह यीशु में ऊपर बुलाया है।"
जो बातें पीछे छूट चुकी हैं, उन्हें भूलना ही आगे बढ़ने की चाबी अकसर शैतान हमे हमारे अतीत की ग़लतियों और गुनाहों की याद दिलाने की कोशिश करता है और ये बेरहम ज़माना भी किसी को उसके अतीत से ही पहचानता है - चाहे वो सफलता या असफलता हो। मगर पौलुस इस सोच को नकार देता है:
*"अत: हम किसी को दुनियावी नज़र से न देखें । हम ने यीशु मसीह को भी इस क़दर से देखा था, लेकिन अब नहीं। इसलिये यदि कोई मसीह में है तो वह पूरी तरह से एक नई रचना है : पुरानी बातें बीत गई हैं; देखो, सब बातें नई हो गई हैं।" - २ कुरिन्थियों ५:१६-१७
तो फिर हमारी सारी ग़लतियाँ जो हमने की थीं उसका क्या? बाइबल कहती है:
*"जैसे आसमान ज़मीन से बेहद ऊँचा है, वैसे ही ख़ुदा की मोहब्बत उसके बच्चों के लिए असीम और बेशुमार है - और जितनी दूर पूरब पश्चिम से है, उसने हमारे गुनाहों को हमसे उतनी ही दूर कर दिया है।" - भजन संहिता १०३:११-१२
ज़रा सोचिये: अगर ख़ुदा ने आपके अतीत को माफ़ कर दिया है, तो आप उसे क्यों लिपट रहे हैं?
अगली बार जब शैतान आपको आपके अतीत की याद दिलाए, तो आप उसे उसके भविष्य की याद दिलाए:मत्ती २५:४१
चाहे आपका अतीत शानदार या टूटा हुआ था, उसे जाने दो। आगे की ओर बढ़ते रहे क्योंकि ख़ुदा ने आपके लिए बहुत ही बेहेतरीन और हसीन मंसूबे रखे हैं।
*"ख़ुदा यह ऐलान करता है: 'तुम्हारे लिए बनाए गए हर मंसूबे को मैं जानता हूँ - ये मंसूबे तुम्हें नुक़सान पहुँचाने के लिए नहीं, बल्कि तुम्हे तरक्की, उम्मीद और एक रोशन भविष्य देने के लिए है।” - यिर्मयाह २९:११
आइए, मिलकर यह दुआ करें:
ऐ आसमानी पिता, आज मैं अपने अतीत को तेरे हवाले करता हूँ। मुझे खुद को तेरी नज़रों से देखने में मदद कर और मेरी आँखों को उन रोशन और खुबसूरत बातों की ओर उठा जो तूने मेरे लिए तैयार रखी हैं। यीशु मसीह के नाम में, आमीन।
(*इस प्रोत्साहन के कुछ आयत मेरे अल्फ़ाज़ और अंदाज़ में लिखे गए हैं)

