लगातार ख़ुदा की हुज़ूरी की तलाश करते रहें।

क्या अपने कभी क़िसी काम को जल्दबाज़ी या बेपरवाही से अंजाम दिया है?
हमें मसीही ज़िंदगी में कभी कभी “जल्दबाज़ और बेपरवाह” होना पड़ता हैं - रूपक में नहीं, बल्कि असल मायने में। कुछ चीज़ें हैं जिन्हें हमें तुरंत लिपटना हैं और कुछ चीज़ों को बेपरवाह होकर समर्पित करना है।
आने वाले दिनों में हम छह महत्वपूर्ण बातों पर ग़ौर करेंगे — तीन जिन्हें हमें कसकर लिपटना है और तीन जिन्हें हमें समर्पित करना हैं।
पहली और सबसे अहम बात जिसे हमें कभी नहीं छोड़ना चाहिए — वह है ख़ुदा की हज़ूरी।
*”ख़ुदा और उसकी ताक़त की खोज में लगे रहें, और लगातार उसकी हज़ूरी की तलाश करते रहें।”— १ इतिहास १६:११
ख़ुदा ने हमें इसलिए बनाया कि हम उसकी हज़ूरी में उम्र भर रहे और उसके साथ चलते रहें। लेकिन उत्पत्ति ३:८ में हम पढ़ते हैं कि आदम और हवा के गुनाह ने उन्हें ख़ुदा की हुज़ूरी से जुदा किया और उन्हें छिपने पर मजबूर भी किया।
यही गुनाह का नतीजा है — हमें ख़ुदा से दूर ले जाता है जिसकी हमें सबसे ज़्यादा ज़रूरत है।क्योंकि ख़ुदा की हुज़ूरी में ये सारी चीज़ें हासिल होती है:
- आनंद की भरपूरी – भजन संहिता १६:११
- आराम और सुक़ून – निर्गमन ३३:१४
- फलदायी ज़िंदगी – यूहन्ना १५:५
- पनाह और हिफाज़त – भजन संहिता ९१:१-२
मगर सच्चाई ये है कि ख़ुदा की हुज़ूरी, इलज़ाम का नहीं, बल्कि शिफ़ा का मक़ाम है।
अब जब हम गुनाह करते हैं, तो हमें ख़ुदा से छिपने की ज़रूरत नहीं है; बल्कि यीशु मसीह की सूली पर दी गई कुर्बानी की वजह से, हम निडर होकर ख़ुदा की हुज़ूरी में आ सकते हैं और उससे माफ़ी पा सकते हैं।
*“इसीलिए हम पूरे यक़ीन के साथ सिर उठाकर ख़ुदा के दरबार में आ सकते हैं, जहाँ उसका रहम और फ़ज़ल हमें बाँहें फैलाए हुए मिलता हैं।" — इब्रानियों ४:१६
ख़ुदा की हुज़ूरी की तलाश में रहे और उसे कसकर लिपटे रहे - शर्म, ग़लतियों का बोझ या डर आपको रोकने न दें।
आइए, मिलकर यह दुआ करें:
ऐ आसमानी पिता, शुक्रिया कि तेरी हुज़ूरी हर समय और हर जगह मौजूद है। मुझे, मेरे गुनाहों के बावजूद, तेरे इंतज़ार में लगातार रहने में और बेख़ौफ़ होकर तेरे क़रीब आने में मदद कर। तेरे असीम फ़ज़ल के लिए शुक्रिया। यीशु मसीह के नाम में — आमीन।
(*इस प्रोत्साहन के कुछ आयत मेरे अल्फ़ाज़ और अंदाज़ में लिखे गए हैं)

