ख़ुदा टूटे दिलों के क़रीब रहता है

काफ़ी समय बाद, यह पहला चमत्कार है जो मैं लिख रहा हूँ।
जैसा कि आप में से कई जानते होंगे, हमारे प्यारे बेटे ज़ैक का हाल ही में देहांत हो गया। गुज़रें चार सालों से ज़ैक ने बड़े बहादुरी से बीमारी का मुक़ाबला किया, जो उसे १० महीने की उम्र में लगी थी।
अंत में, ज़ैक ने हमारी बाहों में अपनी आख़री सांस ली। हमें उसकी बहुत याद आती हैं, लेकिन इस सच्चाई में सुक़ून मिलता है कि अब वह हर दर्द और तकलीफ़ से आज़ाद, यीशु मसीह के साथ, फ़रावां ज़िंदगी जी रहा है।
इस मौसम में अकसर भजन संहिता ३४:१८ की यह आयत हमें याद आती है:
"ख़ुदा टूटे दिलों के क़रीब रहता है; और बिखरें हुओं का उद्धार करता है।"
गुज़रें चार सालों में हमारा दिल अनगिनत बार टुटा और हमारी आत्मा जैसे थक कर चूर हो गई थी। ज़ैक की हालत और उसे रोज़ाना दर्द में देखना, कई बार इस सफ़र को असहनीय बना देता था और नाउम्मीदों से भर देता था।
मगर मैंने भजन ३४:१८ की इस गहरी सच्चाई को जाना कि दर्द और ग़म के समय, भले ही हमें ख़ुदा की मौजूदगी महसूस न हो, वह तब भी हमारे बेहद क़रीब होता है। मायूसी और नाउम्मीदी के सन्नाटे में भी वह हमारे साथ खामोश खड़ा रहता है - सहारा, ढाल और सच्चा हमदर्द बनकर।
पिछले कुछ महीनों से, जैनी और मैं छुट्टी पर थे ताकि हम ज़ैक के जाने के ग़म को महसूस कर सकें और उससे उबरने का वक़्त निकाल सकें। यह सफ़र अभी भी जारी रहेगा, लेकिन साथ ही हमें यह भी खुशी है कि अब हम फिर से हर दिन आपके लिए चमत्कार लिखने लौट आए हैं।
हम अपने शानदार टीम के बहुत शुक्रगुज़ार हैं जिन्होंने हमारी ग़ैर-मौजूदगी में भी यह सिलसिला जारी रखा और हम आम तौर पर कुछ महीने पहले से चमत्कार लिख लेते हैं, ताकि आपसे एक भी दिन का चमत्कार छुट न जाए! 🙌🏽
कल से हम एक नई सीरीज़ "लिपटना और समर्पण करना" से शुरुआत करेंगे, लेकिन आज के लिए मैं बस आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ, क्योंकि आपके दुआओं और सहयोग से हमें इस ग़म में हौसला मिला है।
(*इस प्रोत्साहन के कुछ आयत मेरे अल्फ़ाज़ और अंदाज़ में लिखे गए हैं)

