वो बेमिसाल अंदाज़ और भरपूऱी का ख़ुदा है

मुझे एक बेहतरीन और मोहब्बत-भरा पिता मिला हैं, जिससे जुड़ी बचपन की अनगिनत ख़ूबसूरत यादें आज भी मेरे दिल में बसी हैं। लेकिन इसके बावजूद, मैं जानती हूँ कि मेरे पिता क़ामिल नहीं हैं। आज भी मेरा, ख़ुदा को देखने का नज़रियाँ, मेरे सांसारिक पिता के कई आदतों से प्रभावित हैं।
मिसाल के तौर पर, मेरे पिता, फ़िज़ूल ख़र्च से सख़्त नफ़रत करते हैं। वह हर रुपये का हिसाब रखतें हैं, बचत करते हैं और बहुत ही सोच समझ कर खर्च करते हैं।
एक बार, मैं जल्दबाज़ी में कहीं निकल रही थी और गाड़ी को पीछे लेते हुए किसी चीज़ से टकरा बैठी, जिससे गाड़ी का काफ़ी नुक़सान हुआ। मैं डरते-डरते घर के अंदर गई, मन में ये सोचकर कि मेरे पिता ज़रूर मुझपर बहुत नाराज़ होंगे, कम से कम मायूसी तो जताएंगे ही और शायद मुझे, एक अच्छी-ख़ासी डाँट भी पड़ेगी।
लेकिन मैं हैरान तब हुई, जब उन्होंने सिर्फ़ इतना ही कहा, “कोई बात नहीं, जेनी - अगली बार थोड़ा संभलकर गाडी चलाना।” मुझे तो यक़ीन ही नहीं हुआ और मैंने उनसे पूछा, “आप नाराज़ क्यों नहीं हुए?” उन्होंने मुस्कराते हुए जवाब दिया, “मैं हाल ही में एक दुआ के सभा में गया था और वहाँ ख़ुदा ने मुझसे कहा, कि मुझे थोड़ा नरमी से रहना चाहिए। मैं अभी उसी तरह रहने की कोशिश कर रहा हूँ।”
उस वक़्त जैसे मेरी आँखें खुल गईं — जैसे की मैंने उस दिन ख़ुदा की दरयादिली की एक झलक देखी!
किफ़ायती या सावधानी से पैसे खर्च करने की आदत बहुत से पिताओं में देखने को मिलती है — कुछ में ये समझदारी से होती है, तो कुछ में हालात की मजबूरी से। अगर आपका बचपन ग़रीबी में बीता है, तो मुमकिन है कि आपके पिता को हर रुपये का सख़्ती से हिसाब रखना पड़ता होगा। लेकिन कभी-कभी हद से ज़्यादा किफ़ायत और हर सिक्के का बारीकी से हिसाब रखने की ये आदत, एक ऐसा पिता बना सकती है जो धीरे-धीरे कंजूसी की हद तक पहुँच जाता है — और उस रिश्ते में मोहब्बत से ज़्यादा, हिसाब-किताब रह जाता है।
मगर इसका असर ये भी हो सकता है कि आपके अंदर कमी और तंगी की सोच बैठ गई हो और उसी सोच से आप आज भी ख़ुदा की दरियादिली को समझ नहीं पाते होंगे। वो “बस इतना ही काफी है” या “थोड़ा ही सही” जैसे रवैये से नहीं देता। वो न तो कंजूस है, न ही भौतिकवाद करता है। वो तो बेमिसाल अंदाज़ और भरपूरि का ख़ुदा है।
वो सिर्फ़ दुनियावी चीज़ों में ही नहीं, बल्कि उससे कहीं बढ़कर — माफ़ी, रहमत, मोहब्बत और अब्दी ज़िंदगी जैसे बेशक़िमती तोहफ़ों में भी अपनी दरियादिली ज़ाहिर करता है।
*“क्योंकि ख़ुदा बाप ने सारे जहाँ से ऐसी मोहब्बत की, कि उसने अपना एकलौता बेटा यीशु मसीह को हमारे ख़ातिर क़ुर्बान किया, ताकि जो कोई उस पर ईमान रखें वह भस्म न हो, परन्तु फ़रावां और अब्दी ज़िंदगी हासिल करें।
