मेरे पिता के तौहफ़े का इंतज़ार करें - प्रेरीतों के काम १:४-५

आपको स्वर्गारोहण दिन मुबारक़ हो!
आज हम यीशु मसीह के स्वर्गारोहण को याद करते हैं जो उसके ज़िंदा होने के ४० दिन बाद हुआ था। लेकिन स्वर्ग में जाने से पहले, उसने हमें एक ख़ूबसूरत वादा किया:
*“मैं मेरे पिता से दरख़्वास्त करूँगा और वह तुम्हारे लिए, एक मददगार भेजेगा जो सदा तुम्हारे साथ रहेगा। वह सच्चाई की रूह हैं जिसे इस दुनिया ने पहचाना नहीं क्योंकि, उन्होंने उसे न ही देखा या जाना हैं; लेकिन तुम उसे जानते हैं क्योंकि तुम्हारा दिल उसका बसेरा है और तुम्हारे साथ वह हमेशा बना रहेगा।” – यूहन्ना १४:१६-१७
यीशु मसीह ने अपने चेलों को, पवित्र आत्मा का इंतज़ार करने का ख़ास आदेश दिया था:
*"मेरे पिता के तौहफ़े का इंतज़ार करें, जिसके बारेमे, मैंने कई बार ज़िक्र किया था। यूहन्ना ने तो महज़ पानी से बपतिस्मा दिया था, लेकिन कुछ ही दिनों में तुम पवित्र आत्मा से बपतिस्मा हासिल करोगे।" – प्रेरितों के काम १:४-५
दोस्त , यह वादा सिर्फ़ चेलों तक़ सिमित नहीं था - लेकिन यह आज आपके लिए भी है! ख़ुदा चाहता है कि उसका अज़ीम तोहफा (पवित्र आत्मा) आपके दिल में बसें, आपकी रहनुमाई करे और आपको ताक़त दे। ख़ुदा के कुछ वादें ऐसे होते हैं जिनके लिए इंतज़ार करना पड़ता है, मगर यह वादा आज और अभी उपलब्ध है - बस माँगने की देरी है।
"मैं तुम से कहता हूँ कि माँगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूँढ़ो तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा। क्योंकि जो कोई माँगता है, उसे मिलता है; और जो ढूँढ़ता है, वह पाता है; और जो खटखटाता है, उसके लिये खोला जाएगा। अतः जब तुम बुरे होकर अपने बच्चों को अच्छी वस्तुएँ देना जानते हो, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता अपने माँगनेवालों को पवित्र आत्मा क्यों न देगा।”" – लूका ११:९-१०,१३
यीशु मसीह के चेलों ने, स्वर्गारोहण के वक़्त से लेकर पेंटेकॉस्ट के बीच, १० दिनों तक इंतज़ार किया - तो दोस्त , अगर आपको तुरंत कोई फ़र्क़ महसूस न हो, तो भी माँगते रहे, तलाश करते रहे और यक़ीन बरक़रार रखें - ख़ुदा अपनी पवित्र आत्मा को आप पर ज़रूर बरसायेगा।
आओ हम मिलकर दुआ करें:
"ऐ आसमानी पिता, पवित्र आत्मा के अज़ीम तोहफ़े के लिए तेरा शुक्रिया। मैं तुझसे माँगती हूँ कि तू अपनी आत्मा से मेरी रहनुमाई कर। जिस तरह तूने पेंटेकॉस्ट के दिन, अपने चेलों को अपनी आत्मा की सामर्थ से भर दिया था वैसे ही मुझ पर भी बरसा दे। यीशु मसीह के नाम में, आमीन।"
(*इस प्रोत्साहन के कुछ आयत मेरे अल्फ़ाज़ और अंदाज़ में लिखे गए हैं)

