ख़ुदा में हमे पूर्ण शांति मिलती है – यशायाह २६:३

हमसे अकसर पूछा जाता है कि हम हर ई-मेल की शुरुआत ‘सलाम’ से क्यों करते हैं। हो सकता है कि आपने इसका जवाब पहले सुना हो, लेकिन अगर ऐसा नही है, तो हमें इसे दोबारा आपसे साझा करने में ख़ुशी होगी। 😊
हम रोज़ाना आपको ‘नमस्ते’ से नहीं बल्कि ‘सलाम’ के साथ अभिवादन करते है। यह थोड़ासा अजीब लग सकता है क्योंकि ‘सलाम’ अकसर मिडल इस्टर्न के अभिवादन से जुड़ा है, जबकि ‘नमस्ते’ को भारतीय माना जाता है।
हमें अपने चुनाव को समझाने की इजाज़त दें।
‘नमस्ते’ एक संस्कृत शब्द है जिसका मतलब है ‘मैं आपके सामने झुकता हूँ’। कुछ मसीही लोग, यह तर्क लगा सकते हैं कि झुकना केवल ख़ुदा के तरफ ही होना चाहिए (फिलिप्पियों २:१०-११), जबकि कुछ लोगों का कहना यह है की ख़ुदा के अलावा, किसी इंसान को आदर देते हुए झुकना, जब सांस्कृतिक रूप से योग्य हैं, जैसे की बाइबल में अब्राहाम, याकूब और यूसुफ ने भी किया था, तब वह ग़लत नही है।
मूलरूप से ‘सलाम’ यह शब्द हिब्रू भाषा के शब्द ‘शालोम’ से जुड़ा हैं, जिसे यीशु मसीह ने भी, लोगों का अभिवादन करने के लिए, इस्तेमाल किया था! यीशु मसीह ने कहा: “तुममें शांति बनी रहे।”(शालोम) – यूहन्ना २०:१९
अंग्रेजी में ‘शालोम’ शब्द का मतलब 'शांति' है, लेकिन यह एक साधारण अभिवादन से कहीं ज़्यादा गहरा है। यह पूर्णता, संपूर्णता, आनंद, सेहत, हिफाज़त और सफ़लता का प्रतिक है – यह सारी बरक़ते जो केवल ख़ुदा में ही मिलती हैं (याकूब १:१७)।
*“जो ख़ुदा पर यक़ीन रखता हैं उसके मन को पूर्ण शांति मिलती है, और यहोवा उसकी हिफ़ाज़त करता हैं।” – यशायाह २६:३
इस आयत में 'शालोम' शब्द का जिक्र 'पूर्ण' और 'शांति' दोनों के लिए हिब्रू भाषा में किया गया है 🤯 और अगर इसका शाब्दिक अनुवाद किया जाए तो यह शायद ऐसा पढ़ा जाएगा, “जो परमेश्वर पर भरोसा रखते हैं उनके मन को शांति-शांति (शालोम-शालोम) मिलती है।”
तो हम 'नमस्ते’; जिसका अर्थ है ‘मैं आपके सामने झुकता हूँ’ के बजाय, क्यों ना ‘सलाम’ कहकर ख़ुदा की पूर्ण शांति और सारी बरक़तों को आप पर बुलाएँ?
इस हफ़्ते, हम ‘शानदार शालोम’ इस सीरीज़ को अधिक गहराई से समझेंगे। आज के लिए, यीशु मसीह के ये अल्फ़ाज़ दिल से स्वीकार करें:
दोस्त , शालोम, “मैं तुम्हारे लिए शांति छोड़े जाता हूँ, अपनी शांति तुम्हें देता हूँ; जैसी संसार देता है, वैसी मैं तुम्हें नहीं देता। तुम्हारा मन व्याकुल न हो और न डरे। मुझ पर भरोसा रखने से तुम्हे पूर्ण शांति मिलेगी और मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा ।” (यूहन्ना १४:२७ और यशायाह २६:३)
(*इस प्रोत्साहन के कुछ आयत मेरे अल्फ़ाज़ और अंदाज़ में लिखे गए हैं)

