अकेले चलने से रफ़्तार मिलेगी, मगर साथ चलने से आप और आगे बढ़ सकतें है

जब मैं कभी अपनी पत्नी, जेनी के साथ अपने ख़यालात या ख़्वाब साझा करता हूँ, तो वो हमेशा उस जोश से जवाब नहीं देती है जिसकी मै उम्मीद करता हूँ। अकसर वो मुश्क़िल सवाल पूछती है, जैसे – "क्या आपने इस बारे में सोचा है?" या "ये कैसे होगा?" आदि। ये सवाल मुझे उस वक़्त परेशान कर देते हैं, और मैं कहता हूँ, "तु मेरे ख़याल नही समझ रही है!" लेकिन मैंने वक़्त के साथ यह सीखा है कि उसके ये मुश्क़िल सवाल, एक बेहतरीन मंसूबा बनाने में मदद करते है।
दोस्त , क्या आपको कभी ऐसा महसूस होता है कि लोग आपकी रफ़्तार को धीमा कर रहे हैं?
यीशु मसीह ने लूका १०:१ में, अपने चेलों को सेवकाई के लिए कुछ इस तरह भेजा:
"इन बातों के बाद प्रभु ने सत्तर और मनुष्य नियुक्त किए, और जिस–जिस नगर और जगह को वह आप जाने पर था, वहाँ उन्हें दो–दो करके अपने आगे भेजा।"
यीशु मसीह ने उन्हें दो-दो करके ही क्यों भेजा? क्या ये बेहतर नहीं होता कि वे अलग हो कर ज़्यादा जगहों पर जा सकें?
यीशु मसीह के सबसे जोशीले चेलों पर भी, चुनौतीपूर्ण दिन आते हैं जब सब्र रखना मुश्किल होता है। यीशु मसीह ने उन्हें दो-दो करके भेजा ताकि जब एक कमज़ोर पड़ें, तो दूसरा उसकी ताक़त बनें:
“एक से दो अच्छे हैं, क्योंकि उनके परिश्रम का अच्छा फल मिलता है। क्योंकि यदि उनमें से एक गिरे, तो दूसरा उसको उठाएगा; परन्तु हाय उस पर जो अकेला होकर गिरे और उसका कोई उठानेवाला न हो। फिर यदि दो जन एक संग सोएँ तो वे गर्म रहेंगे, परन्तु कोई अकेला कैसे गर्म हो सकता है? यदि कोई अकेले पर प्रबल हो तो हो, परन्तु दो उसका सामना कर सकेंगे। जो डोरी तीन तागे से बटी हो वह जल्दी नहीं टूटती।” – सभोपदेशक ४:९-१२
अकेले चलने से रफ़्तार मिलेगी, मगर साथ चलने से आप और आगे बढ़ सकतें है।
ख़ुदा ने हमें एक-दूसरे पर निर्भर रहने के लिए बनाया है, जैसे पति-पत्नी, माँ-बाप और बच्चें, दोस्त और यहाँ तक कि मसीह की कलीसिया भी। ये तमाम रिश्ते एक-दूसरे को मोहब्बत और एकता में मज़बूत करने के लिए बनाए गए हैं।
दोस्त , ‘चमत्कार हर दिन’ का ये सफ़र एकतरफ़ा नहीं है। हम ईमान रखनेवालों का एक परिवार हैं जो एक-दूसरे की मदद के लिए हाज़िर हैं। आपकी ज़िंदगी और ईमान के सफ़र पर हम आपके साथ चलने के लिए राज़ी और मौजूद है!

