जो ख़ुदा ने अभी तक़ मुक़म्मल नहीं किया हैं, उसे अंजाम मत दो

विश्वासियों के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है, मुश्किल हालात में ख़ुदा पर यक़ीन बनाए रखना। सच कहूँ तो – मैं हर दिन इसी संघर्ष का सामना करती हूँ!
यह विषय इस हफ़्ते के हमारे अध्ययन में फिर सामने आता है, जब हम यिर्मयाह २९:११ पर ग़ौर करते हैं:
*"ख़ुदा यह ऐलान करता है: 'मैं तुम्हारे लिए बनाए गए हर मंसूबे को मैं जानता हूँ - ये मंसूबे तुम्हें नुक़सान पहुँचाने के लिए नहीं, बल्कि तुम्हे तरक्की, उम्मीद और एक रोशन भविष्य देने के लिए हैं।”
जब हम इस आयत को पढ़ते हैं, तो एक स्वाभाविक सवाल उठता है: अगर ख़ुदा के मंसूबे हमें नुक़सान पहुँचाने के लिए नहीं हैं, तो फिर विश्वासियों को कभी-कभी दर्दनाक हालातों का सामना क्यों करना पड़ता है? क्यों ख़ुदा के मंसूबे हमेशा हमारी उम्मीदों के अनुसार नहीं होते?
यिर्मयाह २९:११ में यह नहीं लिखा है कि "आपको कभी कोई तकलीफ़ नहीं होगी" या "आपको कभी नुक़सान महसूस नहीं होगा।" बल्कि, कुछ आयत पहले ही हम पढ़ते हैं कि ख़ुदा कहता है, "वे सभी जिन्हें मैं निर्वासन में ले गया..." – यिर्मयाह २९:४। क्या इसका मतलब यह है कि ख़ुदा ने अपने ही लोगों पर यह दर्दनाक हालात थोप दिया था? 🤔
हाँ, कभी-कभी ख़ुदा अपने लोगों को मुश्किलात से गुज़रने देता है, मगर हम यक़ीन कर सकते है कि उसके मंसूबे हमेशा हमारे भले के लिए ही है – हमें तरक़्क़ी, उम्मीद और उज्वल भविष्य देने के लिए हैं (यिर्मयाह २९:११)।
"हम जानते हैं कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, उनके लिये सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती हैं; अर्थात् उन्हीं के लिये जो उसकी इच्छा के अनुसार बुलाए हुए हैं।" – रोमियों ८:२८
बाइबल हमें बताती है:
"धर्मी पर बहुत सी विपत्तियाँ पड़ती तो हैं, परन्तु यहोवा उसको उन सबसे मुक्त करता है।" – भजन संहिता ३४:१९
दोस्त , अगर आप किसी तकलीफ़ में हैं, ख़ुदा पर यक़ीन बनाए रखें। जो ख़ुदा ने अभी तक़ मुक़म्मल नहीं किया हैं, उसे अंजाम मत दो।
(*इस प्रोत्साहन के कुछ आयत मेरे अल्फ़ाज़ और अंदाज़ में लिखे गए हैं)

