यीशु मसीह ने राह दिखाने के लिए ख़ून बहाया

जब हमारा बेटा ज़ैक, गंभीर रूप से बीमार हुआ, तो यह कॅमरॉन और मेरे लिए एक अंधकारमय और दर्दनाक वक़्त था। यह नाइंसाफी थी क्योंकि, यह हमारी किसी भी ग़लती और लापरवाही का नतीजा नहीं था। न ही हम इसकी वजह थे, न ही हम इसे रोक सके।
एक बार मैंने कॅमरॉन से कहा, "अगर मुझे मेरी नौकरी पसंद नहीं होती, तो मैं उसे छोड़ सकती थी या अगर मैं किसी ग़लत रिश्ते में होती, तो उससे अपने आपको बहार निक़ाल सकती थी। लेकिन यह ऐसी हालत है जहाँ मैं ख़ुद को पूरी तरह फँसा हुआ महसूस कर रही हूँ।" ये हमने चुना नहीं लेक़िन हम पर थोप दिया गया हैं।
यीशु मसीह को, क्रूस पर चढ़ाये जाने की जगह तक़, सैनिकों ने उसे अपना ही भारी क्रूस उठाने पर मजबूर किया था (यूहन्ना १९:१६-१७)। हम नहीं जानते कि सैनिकों ने उस पर रहम किया या फिर इतनी ज़्यादा थकावट और जिस्म के ज़ख्मो की वजह से, यीशु मसीह वो क्रूस उठा नहीं सके लेकिन शमौन नामक एक आदमी, जो कुरेनी का रहने वाला था, उसे ज़बरन यीशु मसीह का क्रूस उठाने के लिए, सैनिकों ने मजबूर किया (लूका २३:२६)।
यीशु मसीह के पीछे-पीछे शमौन का क्रूस उठाना, यीशु मसीह का सच्चा चेला होने का बेहतरीन मिसाल था। यीशु मसीह ने कहा:
“यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आपे से इन्कार करे और प्रतिदिन अपना क्रूस उठाए हुए मेरे पीछे हो ले।” - (लूका ९:२३)
क्रूस, ज़िंदगी में दर्द और तकलीफ़ की सबसे बड़ी निशानी है और हमें भी अपना क्रूस उठाने के लिए बुलाया गया है - अपनी ज़िंदगी के मुश्किल हालातों से गुज़रते हुए, यीशु मसीह को अपने सामने एक मिसाल और रहनुमा मानकर, अपने कंधों पर अपनी तकलीफ़ों का बोझ उठाए चलना हैं।
हम नहीं जानते कि शमौन को, यीशु मसीह के क्रूस उठाने का सम्मान महसूस हुआ या अपराधियों की भीड़ में ज़बरन शामिल होने की शर्मिंदगी हुई। मगर हक़ीक़त यह थी, कि उसने यह चुना नहीं, लेक़िन उस पर थोप दिया गया।
दोस्त , कई बार ज़िंदगी हम पर ऐसी बेइंतिहा मुश्किलें लाद देती है, जहाँ कोई राह नहीं सूझती, और तब क्रूस उठाना, हमारी मर्ज़ी नहीं, बल्कि लाज़िमी हक़ीक़त और मजबूरी बन जाता है।
मगर यीशु मसीह में हमें दुख सहने का एक बेहतरीन मिसाल दिखाई देता है:
“इस कारण जब कि गवाहों का ऐसा बड़ा बादल हम को घेरे हुए है, तो आओ, हर एक रोकनेवाली वस्तु और उलझानेवाले पाप को दूर करके, वह दौड़ जिसमें हमें दौड़ना है धीरज से दौड़ें, और विश्वास के कर्ता और सिद्ध करनेवाले यीशु की ओर ताकते रहें, जिसने उस आनन्द के लिये जो उसके आगे धरा था, लज्जा की कुछ चिन्ता न करके क्रूस का दु:ख सहा, और परमेश्वर के सिंहासन की दाहिनी ओर जा बैठा।” (इब्रानियों १२:१-२)
दोस्त , क्या आपको लगता है कि आपका क्रूस बहुत भारी हो गया है?एक पल के लिए अपनी आँखें बंद करें और ख़ुद को शमौन की जगह पर रखकर देखें, अपने कंधों पर इस बोझ का भार महसूस करें, मगर फिर - अपनी नज़रें यीशु मसीह की ओर लगाएँ जिसने आपके ख़ातिर हर वार, ज़िल्लत और कोड़ों की चोट सह ली।

