यीशु मसीह ने आपकी शिफ़ा के लिए ख़ून बहाया

हम साथ मिलकर यीशु मसीह की ज़िंदगी के आख़री १८ घंटे और सात बार बहाए गए ख़ून की अहमियत पर ग़ौर कर रहें है।
अब तक, हमने यह जाना है कि यीशु मसीह का ख़ून हमारे गुनाहों की माफ़ी, हर इल्ज़ाम से बाइज़्ज़त बरी और शर्मिंदगी से पाक करने के लिए बहाया गया था।
आज हम सबसे बेरहम घटना की ओर बढ़ते हैं—कोड़ों की मार। मैं यहाँ इसका भयानक विवरण नहीं करूँगी, मगर अगर आप चाहें, तो इंटरनेट पर इसके बारे में और खोज सकते हैं। बस इतना कहना ही काफ़ी है कि बेरहम कोड़ों की मार का ज़ुल्म, इंसानियत की तमाम हदें पार कर जाता है। उन कोड़ों की मार ने यीशु मसीह की पूरी पीठ की खाल उतार दी, यहाँ तक कि उसकी मांसपेशियाँ साफ़ नज़र आने लगीं और उसे ख़ुद के ख़ून में डूबा दिया था।
“जैसे बहुत से लोग उसे देखकर चकित हुए (क्योंकि उसका रूप यहाँ तक बिगड़ा हुआ था कि मनुष्य का सा न जान पड़ता था और उसकी सुन्दरता भी आदमियों की सी न रह गई थी)।” – यशायाह ५२:१४
लेकिन क्यों? यीशु मसीह, जो कभी बीमार नहीं था, जिसने कभी कोई गुनाह नहीं किया - उसे इतना दुःख और दर्द क्यों सहना पड़ा? अगर यीशु मसीह को हमारे लिए मरना ही था, तो इतनी भयानक मौत क्यों सहनी पड़ी?
“वह आप ही हमारे पापों को अपनी देह पर लिये हुए क्रूस पर चढ़ गया, जिससे हम पापों के लिये मरकर धार्मिकता के लिये जीवन बिताएँ : उसी के मार खाने से तुम चंगे हुए।” – १ पतरस २:२४
यीशु मसीह ने, हमे हमारे गहरे ज़ख्मों और तक़लीफ़ों से शिफ़ा देने के लिए, सबसे गहरे घाव सहे। उस बेरहम कोड़ों की मार से ज़्यादा भयानक और विनाशकारी न कोई रोग, न कोई बीमारी और न ही कोई विकलांगता है।
“परन्तु वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के कारण कुचला गया; हमारी ही शान्ति के लिये उस पर ताड़ना पड़ी, कि उसके कोड़े खाने से हम लोग चंगे हो जाएँ।” – यशायाह ५३:५
दोस्त , क्या आपको शिफ़ा की ज़रूरत है? आज ईमानदारी के साथ यह ऐलान करें: “यीशु मसीह, तेरे घावों के ज़रिए मुझे शिफ़ा हासिल हुई है!”

