मैं दिल में आता हु, समझ में नहीं

क्या आपको कभी ऐसा लगता हैं कि आप ख़ुदा को समझ नहीं पा रहे हैं? आप अकेले ही नहीं हैं जो ऐसे सोचते हैं! इस हफ्ते मैं आपको अय्यूब की क़िताब की सैर कराना चाहती हूँ।
इस क़िताब का मुख्य विषय, ग़म और ज़िंदगी की मुश्किलों के सामने एक सही समझ की खोज करना हैं। यह विषय मुझसे इसलिए जुड़ा हैं क्योंकि मेरे बेटे की गंभीर बीमारी के मुश्किल दौर में, अय्यूब की तरह, मैं भी कभी-कभी ऐसे विचार करने लगी थी कि मैं पैदा ही न हुई होती (अय्यूब ३)। ऐसी निराशाजनक परिस्थिति का सामना करते हुए, मैंने अय्यूब की क़िताब को चुनौती पूर्ण और मेरे दिल को साहस देने वाला पाया। इसी आधार पर मैं अपने अनुभव से कुछ बातें आपसे साझा करना चाहती हूँ।
अय्यूब की क़िताब एक दिलचस्प कथा के साथ शुरू होती हैं, जिसमें शैतान ख़ुदा से पूछता है कि क्या वह अय्यूब को कष्ट और पीड़ा से सताए?
अय्यूब १:६-१२ में जब हम पढ़ते हैं, तो हम जानते हैं कि अय्यूब की मुश्किलों का कारण क्या हैं, लेकिन उस वक़्त अय्यूब को इस बारे में कोई अंदाजा नहीं था।*
हमारी मुश्किलों के समय में, यह याद रखना जरूरी है कि हम नहीं जानते कि हमारे बारे में स्वर्ग में क्या बातें हो रही हैं और ख़ुदा हमारे ज़िंदगीमें गम आने के लिए क्यों इजाजत देता हैं।
अय्यूब ४२:३ में लिखा है, “परन्तु मैं ने तो जो नहीं समझता था वही कहा, अर्थात् जो बातें मेरे लिये अधिक कठिन और मेरी समझ से बाहर थीं जिनको मैं जानता भी नहीं था”।
ख़ुदा को समझना इंसान के बस की बात नहीं हैं।
वह दिल में आता हैं, समझ में नहीं! हमारा काम उसे समझना नहीं, बल्कि उस पर भरोसा करना हैं!
नीतिवचन ३:५-६ में लिखा हैं, "तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन् सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।”दोस्त , आज कुछ समय निकालकर उन चीजों पर विचार करें जो आपके समझ के बाहर हैं और इस दुआ से अंत करें - खुदा, अय्यूब की तरह, मैं...

