माफ़ी त्याग है

यह शायद एक अजीब सवाल हैं - क्या आप हत्यारों के बिच रह सकते है? क्यूँ कोई हत्यारों के बिच में रहना चाहेगा? और फिर भी, यह एलिज़ाबेथ इलियट की कहानी है। उसने अपने पति के हत्यारों के बीच रहना चुना!
जिम और एलिज़ाबेथ इलियट एक अज्ञात जनजाति के मिशनरी थे। वे लंबे समय से उस जनजाति के साथ रिश्ता स्थापित करने की कोशिश कर रहे थे। एक दिन आखिरकार जिम और उसके दोस्तों ने आमने-सामने संपर्क करने का प्रयास किया, लेकिन आदिवासी सदस्यों ने उन्हें तुरंत मार डाला।
एलिज़ाबेथ ने हत्यारों को माफ़ करने का फ़ैसला किया और उनके साथ सुसमाचार साझा करने की कोशिश जारी रखी। अंत में, वह सफल हुई और कई सालों तक अपने पति के हत्यारों के बीच अज्ञात जनजाति के साथ रही। माफ़ी का उल्लेखनीय कार्य जनजाति के लिए एक गवाही बन गई।
उस कारण, जनजाति के भीतर हिंसा, जिन्हे 'जंगली' भी कहा जाता है, में भारी गिरावट आयी और हत्याएं कम हो गईं। कई लोगो ने यीशु मसीह का स्वीकार किया और वही एक स्थानीय चर्च का जन्म हुआ। एलिज़ाबेथ द्वारा माफ़ करने के निस्संदेह कठिन निर्णय के लिए यह कितना ख़ूबसूरत इनाम है।
एलिज़ाबेथ के अल्फाज़ में:
“यीशु मसीह का अनुसरण करने का मतलब है, उस मार्ग पर चलना जिस पर वह चला और हमें माफ़ करने के लिए वो कुर्बान हुआ। माफ़ी त्याग है और एक समर्पण भी है। इसे हमसे कोई छीन नहीं सकता है, जैसे यीशु मसीह का प्राण भी कोई उनसे नहीं छीन सकता था, जब तक उसने अपने प्राण को स्वइच्छा से नहीं सौंपा था। ज़िंदगी मे होने वाले किसी भी ज़ोखिम को उठाते हुए, हम भी अपने आपको अर्पण कर सकते हैं जैसे यीशु मसीह ने किया। इस निश्चित ज्ञान के साथ कि जो इंसान यीशु मसीह के लिए अपनी ज़िंदगी या अपनी प्रतिष्ठा या अपना 'चेहरा' या जो भी त्याग देता है, वह उसे बचाएगा।”
हम वैसे ही कर सकते हैं जैसा उसने किया। हम इसे अर्पित कर सकते हैं, इससे होने वाले किसी भी नुक़सान को माफ़ करते हुए, इस निश्चित ज्ञान के साथ कि जो व्यक्ति यीशु मसीह के लिए अपनी ज़िंदगी या अपनी प्रतिष्ठा या अपना 'चेहरा' या कुछ और त्याग देता है, वह उसे बचाएगा (मत्ती १६:२४- २५)।
दोस्त , क्या आपको एलिज़ाबेथ की कहानी प्रेरित करती है?
आइए हम साथ में दुआ करते है:'हे प्रभु, यदि मैं दूसरों को ठेस पहुँचाऊँ तो मुझे माफ़ी माँगने की शक्ति देना। यदि दूसरे मुझे ठेस पहुँचाते हैं, तो मुझे उन्हें माफ़ करने की शक्ति देंना।'

