यीशु मसीह आपके दिल में ईमान के ज़रिए बसता हैं

आपको पता है, कि ईमान और डर में क्या अंतर है?
ख़ुदा पर ईमान रखना हमेशा अच्छा होता है, लेकिन डर हमेशा बुरा नहीं होता हैं।
वास्तव में, डर ख़ुदा की ओर से एक स्वस्थ एहसास है। यह एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है जो हमें ख़तरे से बचाने के लिए बनाई गई है। ज़रा सोचिए कि अगर आप एक शेर के सामने खड़े हैं और आपको डर महसूस न हो... तब तो बड़ी मुश्किल होगी! 😵
कई बार हमसे कहा जाता है कि अगर हम ईमान से चलते है, तो हमारे अंदर कोई डर नहीं हो सकता। लेकिन यह सच नहीं है। डर का न होना ईमान नहीं हैं - यह लापरवाही हैं। ऐसा व्यक्ति जो किसी भी चीज़ से नहीं डरता, वह खुद के लिए और अपने आस-पास के लोगों के लिए ख़तरा है।
मैं तो यह भी कहूंगा कि: बिना डर के, आपको ईमान की ज़रूरत ही नहीं होती।
इस बात पर एक पल सोचिए। 🤔
अगर आपको किसी भी चीज़ का डर या संदेह न हो, तो अपने मुश्किलों, गुज़ारिशों या फ़िक्रों में ख़ुदा पर भरोसा करने के लिए ईमान की ज़रूरत क्यों होगी? हमें केवल तब ईमान की ज़रूरत होती है जब शक मौज़ूद होता है। ऐसे पलों में, हमारे पास एक चुनाव होता है: या तो हम इस भ्रम में रहें कि फ़िक्र करने से मुश्किलों का हल हासील होगा या अपनी नज़रे ख़ुदा की ओर उठाकर भरोसा करें कि वो सबकुछ संभालेगा।
क्या आपने सोचा है कि, "ख़ुदा ने हमें डर जैसे एहसास से क्यों बनाया है, सिर्फ़ इसीलिए, कि हमें उस पर भरोसा करना चाहिए?"
यह इसलिए है क्योंकि ख़ुदा चाहता हैं कि आप आज़ाद रहें, यह चुनने के लिए कि आप एक प्राकृतिक प्रवृत्ति पर भरोसा करेंगे या एक अलौकिक ख़ुदा पर। ख़ुदा के दिल की ख्वाहिश यह कि हम उसी पर ईमान रखें, लेकिन हमारा ईमान तब तक सच्चा नहीं हो सकता जब तक हमारे पास डर जैसा दूसरा विकल्प न हो।
"और विश्वास बिना उसे प्रसन्न करना अनहोना है; क्योंकि परमेश्वर के पास आनेवाले को विश्वास करना चाहिए कि वह है, और अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है।" – इब्रानियों ११:६
दोस्त , मैं आप पर पौलुस से प्रेरित एक दुआ करता हूँ जो इफिसियों ३:१६-१९ में है:
"मैं दुआ करता हूँ कि ख़ुदा आपको अपनी रूह के ज़रिए ताक़त दे और ईमान के ज़रिए यीशु मसीह आपके दिल में बसे। आप उसकी समझ से परे, बेशुमार मोहब्बत को समझ सकें और उसकी संपूर्णता से भर जाएं।"

