परिश्रम करनेवाले की सब अभिलाषाएं पूर्ण होती हैं

उम्मीद है कि आपको छुट्टियों में कुछ आराम का वक़्त भी मिला होगा। मेरा अंदाज़ा है कि आपकी नौकरी या स्कूल कल से शुरू हो जाएगी, हैं ना?
जैसे ही आप अपने हर दिन के कामकाज़ में वापस आ रहे हैं, मेरे पास नीतिवचन की किताब से इस साल की अच्छी शुरुआत के लिए एक आख़िरी और शानदार सुझाव है: आलस्य छोड़ने का संकल्प लें 🥱।
"यदि तू थोड़ा और सोएगा, कुछ समय और झपकी लेगा, छाती पर हाथ रखे लेटा रहेगा तो यह निश्चय है, कि पथ के लुटेरे की तरह गरीबी तुझ पर टूट पड़ेगी; सशस्त्र सैनिक के समान अभाव तुझ पर आक्रमण करेगा।" - नीतिवचन ६:१०-११
नीतिवचन में कई आयतें हैं जो मेहनत को आलस्य से बेहतर बताती हैं:
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"परिश्रम से सदा लाभ होता है, पर कोरी बक-बक से गरीबी आती है।" - नीतिवचन १४:२३
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"नींद को प्यार मत करो, अन्यथा तुम गरीब हो जाओगे; आंखें खोलकर कठोर परिश्रम करो तो तुम्हें रोटी का अभाव न होगा।" - नीतिवचन २०:१३
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"आलसी किसान खरीफ के मौसम में हल नहीं जोतता, इसलिए जब वह कटनी के समय फसल खोजता है, तब उसके हाथ कुछ नहीं लगता।" - नीतिवचन २०:४
मैं पूरी तरह से मानती हूँ कि ख़ुदा मेहनत को बरकत देता है और एक अच्छी काम की मानसिकता को भी। लेकिन, यह समझना बहुत ज़रूरी है कि आराम औरआलस्य के बीच बहुत बड़ा फ़र्क है। आराम ख़ुदा की ओर से एक इनाम है और बाइबल का एक उसूल भी है, जबकि आलस्य ख़ुद की मनमानी का नतीजा है।
यहाँ आप इस प्रकार से फ़र्क़ बता सकते हैं:
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आराम एक लय में होता है (जैसे रात की नींद या शब्बात के दिन आराम), जबकि आलस्य हमारी समझ के ख़िलाफ़ होता है।
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आराम हमे ताज़गी लाता है; हमें प्रेरित और उत्साहित कराता है, जबकि आलस्य हमें और भी ज़्यादा सुस्त बना देता है।
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आराम हमें ख़ुदा की याद दिलाता है और यह कि ज़िंदगी में काम से बढ़कर भी कुछ है; जबकि आलस्य, जैसे कि सोशल मीडिया पर घंटों तक स्क्रॉल करना, हमें ख़ुदा से दूर ले जाता है।
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आराम उत्पादकता की ओर ले जाता है, जबकि आलस्य और ज़्यादा विलंब का कारण बनता है।
दोस्त , मैं आपको आलस्य छोड़ने के लिए और इसके बजाय ख़ुदा से आराम की तलाश करने के लिए उत्साहित करती हूँ ! उसके हज़ूरी में आराम का वक़्त लें, लेकिन ज़रूरत से ज़्यादा देर तक इधर-उधर भटकने की इच्छा को रोकें 😉।

