दिलेर और मज़बूत रहो, ख़ौफ़ को दिल में जगह मत दो

क्या आपने कभी यह कहावत सुनी है, “भूखे पेट ख़रीदारी न करें”? इसका मतलब यह है, की जब पेट में चूहें दौड़ रहें हैं तब दुकान में जाकर खाने की चीज़ न खरीदें - क्योंकि हमेशा हम हद से ज़्यादा खरीदारी करते हैं और फिर अफ़सोस होता है। मेरे साथ ऐसा कई बार हुआ है - 🤦🏻♀️
आज हम फ़र्क़ करने की अहमियत सीख रहे हैं: अच्छे और ख़ुदाई फैसलों की काबिलियत। कभी-कभी तुरंत फ़ैसला लेने के बजाय, एक पल ठहरकर सोचना बेहतर होता है। जैसे भूखे पेट ख़रीदारी नहीं करनी चाहिए, वैसे ही कुछ फ़ैसले तब न ले…
१. जब आप जज़्बाती हैं
जज़्बाती होकर फैसला लेने में समझदारी पर पर्दा पड़ सकता है और बिना सोचे-समझे, जल्दबाज़ी में उसी वक्त क़दम उठाने के लिए मजबूर कर सकता है। भावनाएं कुछ पल की होती हैं और मूड बदलने पर आपको अपने फ़ैसले पर अफ़सोस हो सकता है। यह हर जज़्बात पर लागू होता है, लेकिन ख़ास तौर पर दिल के ज़ख़्म और ग़ुस्से पर।
“क्योंकि मनुष्य के क्रोध के द्वारा परमेश्वर की धार्मिकता नहीं मिल सकती।” – याक़ूब १:२०
“क्योंकि क्रोध मूर्खों ही के हृदय में रहता है।” – उपदेशक ७:९
फ़ैसले तब न ले…२. जब आप डरें हुए हैं डर वह जाल है जो शैतान आपको आपकी पूरी काबिलियत तक पहुंचने से रोकने के लिए बिछाता है। डर के बदले ईमान को चुनें और ग़लत नतीजे पर अंदाज़ न लगाए लेकिन ख़ुदा आपके साथ है, यह यक़ीन करें।
“हियाव बाँधकर दृढ़ हो जा; भय न खा, और तेरा मन कच्चा न हो; क्योंकि जहाँ जहाँ तू जाएगा वहाँ वहाँ तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे संग रहेगा।” – यहोशू १:९
फ़ैसले तब न ले…३. जब आप थके हुए हैं
थकान, नज़रिए को ग़लत और मुश्किलों को अपने असर से ज़्यादा बड़ा बना देती है। कॅमरॉन और मैं एक आसान उसूल का पालन करते हैं: रात के १० बजे के बाद कोई बड़ा फ़ैसला नहीं लेते हैं। सुकून की नींद से ताज़गी मिलती है और सही-ग़लत का फ़र्क़ साफ-साफ दिखाई देता है।
“मैं उन लोगों को आराम और शक्ति दूँगा जो थके और कमजोर हैं।” – यिर्मयाह ३१:२५
दोस्त , आइए हम इस उसूल को अपनाये: कि जब हम जज़्बाती, डरे और थके हुए है, तब अहम फ़ैसले न लें। अगर आप शादीशुदा हैं, तो अपने जीवनसाथी के साथ भी यह ज़ाहिर करें।

