इम्तेहान और जित के बीच में

आज कौन सा दिन है? आपका पता नहीं, लेकिन क्रिसमस के बाद, मुझे दिन और वक्त का ध्यान नहीं रहता है क्योंकि हर दिन एक छुट्टी का दिन जैसा महसूस होता है, है ना?
शायद, यीशु मसीह की साथ भी ऐसा हुआ होगा। उन्होंने ४० दिन और ४० रात जंगल (रेगिस्तान) में बिताए, जहाँ शैतान ने उन्हें परीक्षा में डाला (मत्ती ४:१)। मत्ती ४:२ में लिखा है कि “वह चालीस दिन, और चालीस रात, निराहार रहा, तब उसे भूख लगी।” 😉 सिर्फ भूख लगी??? क्या यह सिर्फ मुझे लग रहा है, या यह बाइबल का सबसे बड़ा मामूली कथन जैसा सुनाई देता है?
भूख के अलावा, यीशु मसीह अकेला और हद से ज़्यादा थका होगा। लेकिन उसे पता था कि उसका सबसे बड़ा इम्तेहान अभी भी बाकी था: उसका क्रूसपर चढ़ाया जाना।
यीशु मसीह ने दुआ की, “हे पिता, यदि तू चाहे तो इस कटोरे को (= क्रूस की यातना) मेरे पास से हटा ले, तौभी मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो।” (लूका २२:४२)।
अगर उस वक्त चुनाव यीशु मसीह के हाथ में होता, तो वह शायद क्रूस की बेरहम यातना को टालकर सीधे उसके बलिदान का इनाम, पिता के दाहिने हाथ के ओर बैठना, जहाँ हर घुटना उसके सामने झुकता और हर ज़ुबान ये मानती कि वही ख़ुदा हैं, यह चुनता। (फिलिप्पियों २:९-११)।
दोस्त , क्या कभी आपको भी लगता है कि ज़िंदगी के मुश्किल हिस्सों को टालकर सीधे खुशहाल नतीजें तक पहुँच जाएँ?
यह वही लालच था जो शैतान ने जंगल में यीशु मसीह को दिया था। शैतान ने कहा, “अगर तुम मेरे सामने झुको, तो मैं तुम्हें धरती के सारे राज्य दे दूँगा।” उसने यीशु मसीह को एक शॉर्टकट, एक "सीधे-खुशहाल-नतीजे" का लालच दिया।
यीशु मसीह ने खुद को इम्तेहान और जित के बीच में पाया। उसे पता था कि जित तक पहुँचने के लिए इम्तेहान का रास्ता, वो बिच का समय पार करना ही था क्योंकि उसके बलिदान के बिना गुनाहों की माफी नहीं मिलती, मृत्यु पर जीत और अनंतकाल के ज़िंदगी का वरदान हासिल नहीं होता।
इम्तेहान के बिना, जित हासिल नहीं हो सकती।
दोस्त , एक पल के लिए यीशु मसीह के बलिदान के लिए उसका शुक्रिया करें और उसे उन ज़िंदगी के इम्तेहानों में आमंत्रित करें जिनका आप आज सामना कर रहे हैं।

