डर मत, बस यक़ीन रख

सोमवार मुबारक हो ! 🤗
मैं आने वाले दिनों में आपके साथ ईमान और डर के विषय पर बात करना चाहता हूँ - तो तैयार हो जाइए! 😉
इब्रानियों ११:१ “विश्वास उन बातों का पक्का निश्चय है, जिनकी हम आशा करते हैं और उन वस्तुओं के अस्तित्व के विषय में दृढ़ धारणा है, जिन्हें हम नहीं देखते।"
आगे लिखा है, "विश्वास द्वारा हम जान लेते हैं कि परमेश्वर के शब्द द्वारा विश्व का निर्माण हुआ है और अदृश्य से दृश्य की उत्पत्ति हुई है।" – इब्रानियों ११:३
दूसरी तरफ़, डर को शब्दकोश में यह परिभाषा दी गई है कि ‘यह एक तकलीफ़देह भावना’ है जो बुराई की अपेक्षा या किसी आने वाले ख़तरे की आशंका के कारण होती है। डर वह बेचैनी है जो भविष्य में होने वाली किसी बुरें विचार से मन में उत्पन्न होती है जो हम पर आ सकती है।
ईमान और डर में एक समान बात यह है कि दोनों अनदेखी चीज़ों की उम्मीद करते हैं। ईमान का मतलब है कुछ अच्छा होने की उम्मीद करना, जबकि डर का मतलब है कुछ बुरा होने का इंतज़ार करना।
"ईमान और डर दोनों आपसे ऐसी चीज़ों पर यक़ीन करने की माँग करते हैं जिन्हें आप देख नहीं सकते। आपको चुनना हैं।" – बॉब प्रॉक्टर
क्या आपने कभी यह मुहावरा, "डर के बदले ईमान चुनें" सुना है? यह एक प्रभावशाली याद दिलाने वाली बात है कि आपको हमेशा ईमान और डर के बीच चुनना होता है। हमे डर के क़ाबू में रहने की ज़रूरत नहीं है।
बाइबल लगभग ७० बार यह गुज़ारिश करती है कि "मत डर" ख़ुद यीशु मसीह ने कहा, “मत डर! केवल विश्वास रख।" – मरकुस ५:३६
दाऊद का भी ऐसा दृष्टिकोण है:
"जिस समय मैं भयभीत होता हूं, तुझ पर ही मैं भरोसा करता हूँ। परमेश्वर पर, जिसके वचन की मैं प्रशंसा करता हूं, परमेश्वर पर मैं भरोसा करता हूं, मैं नहीं डरूंगा; मनुष्य मेरा क्या कर सकता है?" – भजन संहिता ५६:३-४
दोस्त , एक पल लें और ख़ुदा से दुआ करें कि वह आपके दिल में छिपे किसी भी डर को प्रकट करें, और फिर उन्हें इस दुआ के साथ समर्पित करें जो - भजन संहिता २३:४ और भजन संहिता २७:१ से है:
"हे स्वर्गीय पिता, आज मैं डर के बदले ईमान को चुनता हूँ। मुझे यक़ीन है कि आप मेरे साथ हैं, यहाँ तक कि सबसे अंधेरे समय में भी आप ही नूर, उद्धार और ताक़त हैं; आपके साथ मुझे ज़िंदगी में डरने का कोई कारण नहीं है। मैं अपने सभी डर के भावनाओं को आपके हवाले करता हूँ। आमीन।"

